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सेनापति सज्जन-सोलंकी नरेश भीम द्वितीथ का प्रधान सेनापति सज्जन भारी युद्धवीर और साथ ही परम धार्मिक जैन श्वायक था। भीम जब गद्दी पर बैठा तो बालक ही था। अतः उसका और उसके राज्य का वास्तविक संरक्षक यह जैन वोर सज्जन ही था। राजमाता का भी उसपर पूर्ण विश्वास था, जिसे सज्जन के विद्वेषियों की चुगली भी विचलित नहीं कर सकीं। सज्जन के त्रिकाल सामयिक का नियम था । युद्धभूमि में हाथी के ऊपर बैठे-बैठे समय पर वह एकाग्रचित्त होकर दो घड़ी अपने इस आध्यात्मिक कृत्य का सम्पादन कर लेता और फिर रणमेरी फूंककर अपने क्षात्रधर्म का पालन प्रचण्डता के साथ करता। उसी के सेनापतित्व में संचालित गुजरात की सेना ने आबू पर्वत की तलहटी में शिहाबुद्दीन मोरी-जैसे प्रचण्ड यवन आक्रमणकारी और विजेता को पराजित करके भगा दिया था। इस तथ्य को मुसलमान इतिहासकार भी स्वीकार करते हैं। उसके पश्चात् 1195 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक को पराजित करने का श्रेय भी बीर सज्जन को ही है। भीम द्वितीय का अन्तःपुररक्षक लवणप्रसाद भी जैन था जो उसके उत्तराधिकारियों के समय में राज्य का कुछ काल के लिए प्रायः सर्वेसर्वा लसर (धवलापुरी) इसी कधी जागीर थी।
मन्त्रीश्वर वस्तुपाल-तेजपाल...लायणप्रसाद का पुत्र एवं उत्तराधिकारी घोराका का सामन्त कीरधवल पर्याप्त शक्तिशाली, समृद्ध और प्रभावशाली था। उस सजा के ही मन्त्री ये सुप्रसिद्ध भ्रातद्वय वस्तुपाल और तेजपाल थे। वे उस पद पर उसके पुत्र एवं उत्तराधिकारी वीसलदेव के समय में भी बने रहे और उसके उपरान्त जय 1243 ई. में इस बीसलदेव बधले ने अन्तिम सोलंकी त्रिभुवनपाल को गद्दी से उतारकर गुजरात के सिंहासन पर अधिकार कर लिया तब भी अपनी मृत्यु पर्यन्त पूर्ववत् उसके राजमन्त्री बने रहे। गुजरात राज्य के हास एवं अवनति के उस युग में उसके मौरव और प्रतिष्ठा को भरसक सुरक्षा जिन जैन धीरों ने की उनमें यह बन्धुयुगल-वस्तुपाल और तेजपाल, प्रमुख एवं सर्वाधिक स्मरणीय हैं। ये दोनों भाई ओसवाल जातीय धनकुबेर, राजनीति-विचक्षण, भारी युद्धवीर और आदर्श जैन थे। मन्त्रीश्वर वस्तुपाल के मुजरात के स्वराज्य को नष्ट होने से बचाने के लिए अपने जीवन में वेसठ बार युद्धभूमि में गुर्जर सैन्य का संचालन किया था। इस प्रचण्ड वीर का स्वधर्माभिमान इतना उग्र था कि एक साधारण जैन यात का अपमान करने के अपराध में उसने स्वबं गुजरेश्वर महाराज श्रीसलदेव के मामा का हाथ कटवा झाला. था। वह निर्माता भी अद्धत था। आबू (देलवाड़ा) का विश्वविख्यात जैन कलाधाम, भगवान् नेमिनाथ का अद्वितीय मन्दिर उसने 1232 ई. में करोड़ों रुपये के व्यय से बनवाया था। सेरिसा में पार्श्वनाथ का भव्य मन्दिर उसने बनवाया, अन्य अनेक स्थानों में मवीन जिनालय बनवाये और पुसनों का जीर्णोद्धार कराया था। जैन धर्मायतनों के अतिरिक्त उसने मोमनाथ, भृगक्षेत्र, शुक्लतीर्थ, वैधनाथ, द्वारिका,
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266 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ