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________________ नानाanemamam लीभत्स, अद्भुत और शान्त सभी रसों का परिपाक हुआ था। उसकी जीवन-कविता में माधुर्य, ओज और प्रसाद का अद्भुत सम्मिश्रण था। देशत्याग, संकर, सहाय-असहाय, क्षुधा-तृषा, मिक्षायाचन, हर्ष, शोक, अरण्याटन, जीवित-संशय, राज्यप्राप्ति, यद शत्रहार निजामाला, नीति पवर्तन धर्मपालन, अभ्युदयारोहण और अन्त में अनिच्छित भाव से भरण इत्यादि एक महारशायिका के वर्णन के लिए आवश्यक सभी रसोत्पादक सामग्री उसके जीवन में विद्यमान थी। काव्यमीमांसकों ने काव्य के लिए जो धीरोदात्त नायक की कल्पना की है उसका वह यथार्थ आदर्श था।" गुजरात के ही नहीं, सम्पूर्ण भारतीय इतिहास में जैन सम्राट् कुमारपाल सोलंकी का विशिष्ट स्थान है। धार्मिक सहिष्णुता भी उसमें ऐसी थी कि यदि शत्रुजय का संरक्षक था तो सोमनाथ को भी विस्मरण नहीं किया और अपनी गर्थोन्नत राजधानी अन्हिलपुर में तीर्थंकर पार्श्वनाथ का कुमारविहारजिनालय बनाया तो उसके निकट शम्मु का कुमारपालेश्वर-शिवालय भी बनवाया। उसके प्रिय गुरुवर हेमचन्द्राचार्य का 1172 ई. में अकस्मातु स्वर्गवास हो गया। यः वियोम कुमारपाल के लिए असह्य हो गया और छह मास के भीतर ही वह स्वयं भो मृत्यु को प्राप्त हो गया। एक मत के अनुसार आचार्य की मृत्यु के 32 दिन बाद ही स्वयं उसके भतीजे अजयपाल ने विष द्वारा उसकी हत्या कर दी थी। इसी समय से लोलकी राज्य की अवनति प्रारम्भ हो गयी । कुमारपाल की साध्वी रानी भोपलादेवी थी और एक मात्र सम्तान पुत्री लीलू थी, जिसके पुत्र प्रतापमल्ल को वह अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहता था। अजयपाल बड़ा धर्मविद्वेषी और अत्याचारी था। मन्त्री कापदि, कवि रामचन्द्रसूरि, महादण्डनायक अन्बडभट-जैसे कुमारपाल-भक्तों पर उसने भीषण अत्याचार किये। अजयपाल ने अम्बड़ से कहा कि उसे अपना स्वामी स्वीकार कर ले, तो उस वीर ने उत्तर दिया कि 'इस जन्म में तो अर्हत भगवान ही मेरे इष्टदेव, हेमचन्द्र मेरे गुरु और कुमारपाल ही मेरे स्वामी हैं-अन्य किसी व्यक्ति के सम्मुख यह सिर नहीं झुक सकता।' उस घोर ने अन्यायी के सामने झुकने के बजाय मृत्यु पसन्द की। उसके एक जैन मन्त्री यशपाल ने 'मोहपराजय' नाटक लिखा था। एक द्वारपाल ने 1177 ई. में अजयपाल की हत्या कर दी और भीम द्वितीय राजा हुआ ! पण्डित सालिवाहन ठक्कुर श्री उज्जयन्त तीर्थ (गिरनार) के नेमिनाथ-मन्दिर की दीवार पर अंकित 1158 ई. के एक शिलालेख के अनुसार उक्त वर्ष ठक्कर भरथ के पुत्र संघवी टक्कुर सालिकाहन ने, जो एक विद्वान् पण्ठित भी थे, शिल्पी जसह और सावदेव से समस्त जैन देवताओं की प्रतिमाएँ बनवाकर उस वर्ष की थैत्र शुक्ल 8 रविवार के दिन उक्त तीर्थ पर प्रतिष्ठित करायी थीं और नागरिशिस मामक कुण्ड बनवाकर, उसकी चहारदीवारी भी बनवायी और उसमें कुण्ड की अधिष्ठात्री अम्बिकादेवो की मूर्ति तथा अन्य पार बिम्ब निर्माण करायार स्थापित किये थे। उत्तर भारत :: 25
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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