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________________ N arentiated एकाधिपत्य स्थापित करने और चावड़ा राजाओं की राजधानी अन्हिलपाटन पर अधिकार करके उसे अपनी राजधानी बनाने में सफल हो गया था, जिसमें लगभग 20 वर्ष पश्चात उसकी युद्ध में मृत्यु हुई। जैन न होते हुए भी उसने और उसके वंशजों ने जैनधर्म के प्रति अपने पूर्ववती नरेशों की नीति को ही अपनाया। सोमनाथशिव इस वंश के कुलदेवता, राष्ट्रदेवता और इष्टदेवता थे, किन्त जिनदेव को भी पूरा सम्मान और मान्यता दी गयी । फलस्वरूप जैन मन्त्रियों, सेनापत्तियों, दण्डनायकों और योद्धाओं, सेठी और साहूकारों, विद्वानों और कलाकारों ने स्वयं को सोलंकी राज्य की अतुल शक्ति और अपार समृद्धि का मूलाधार एवं सृदृढ़ स्तम्भ निरन्तर चरितार्थ किया । इतिहास ने भी उनकी देन को स्वीकार किया। मूलराज का पुत्र एवं उत्तराधिकारी चोमुडिराजाधि दलमराज ने कुछ मास ही राज्य किया। तदनन्तर दुर्लभराज का पुत्र भीमदेव प्रथम (1010-12 ई.) राजा हुआ, जिसके समय में महमूद गजनवी ने सोमनाथ का विध्वंस किया, और जिसका मन्त्री प्रसिद्ध विमलशाह था 1 भीमदेव का पुत्र एवं उत्तराधिकारी कर्णदेव {1063-43 ई.) था और उसका पुत्र सुप्रसिद्ध जयसिंहसिद्धराज (1054-1143 ई.) था। इसका उत्तराधिकारी सुप्रसिद्ध जैन सम्राट् कुमारपाल (1143-1178 ई.} था। तदनन्तर अजयपाल, भीमदेव द्वितीय, मूलराज द्वितीय और त्रिभुवनपाल नामक अपेक्षाकृत पर्याप्त निर्बल नरेश 1174 से 1248 ई, के मध्य हुए। अन्तिम सोलंकी राजा को गद्दी से उतारकर धौलका के सामन्त बीसलदेव मे 1243 ई. में गुजरात के सिंहासन पर अधिकार किया और बघेला (ध्यानपत) वंश की स्थापना की। यह स्वयं सोलंकी नरेश भीम द्वितीय के अन्तःपुर-रक्षक लवणप्रसाद नामक जैन आँधकारी का वंशज, सम्भवतया पौत्र था। बधेलों का अन्त 1298 ई. में दिल्ली के मुसलमान सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने किया। जैनधर्म और जैनों के प्रति बघेले राजाओं की भी प्रायः वही नीति रही जो उनके पूर्ववर्ती सोलंकी नरेशी की थी! मन्त्रीवर विमलशाह-श्रीमालजातीय एवं पोरवाडयंशी जैन श्रेष्ठि विमलशाह गुजरात के प्रतापी सोलंकी नरेश भीमदेव प्रथम (10340-1862 ई.) का कृपापात्र एवं स्वामिभक्त अमात्य था। सोलंकीयुग में राजधानी अन्हिलवाड़े का प्रथम नगरसेठ बनने का सौभाग्य विमलशाह को ही प्राप्त हुआ था। वह मात्र एक धनी यणिक सेठ ही नहीं था, बरन राजा का एक प्रमुख कुशल मन्त्री भी था और ऐसा प्रचण्ड सेनानायक भी था कि उसने गुजरात की सेना को सिन्धुनद के नीर में तैरकर राजनी की भी सीमा को पददलित किया था। अपने राजा के लिए उसने अनेक भयंकर युद्धों का सफल संचालन किया था। वह वीर योद्धा बड़ा धर्मानुरागी, उदार और दानी भी था। आबू-पर्वत (अर्बुदगिरि) का विश्वविख्यात कलाधाम भगवान आदिनाथ का मन्दिर, जो बिमल-बसही भी कहलाता है, विपुल द्रव्य व्यय करके 1982 ई. में इस मन्त्रीराज विमल से ने ही बनवाया था। EKS BEE. S 25 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन धुझाष और महिलाएं
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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