SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ओर उत्कीर्ण है। यह मन्दिर खजुराहो में स्थित पूर्वी समूह के जैन मन्दिरा में तीसरा है और उनमें सर्वाधिक विशाल, कलापूर्ण एवं भव्य है। मूलतः यह आदिनाथ भगवान् का मन्दिर था और जिननाथ मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध था। आदिनाथ की मूलनायक प्रतिमा के न रहने पर 1860 ई. में उसके स्थान पर पार्श्वनाथ की मनोज्ञ प्रतिमा स्थापित कर दी गयी थी, जिसके कारण यह पारसनाथ मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया। मन्दिर में ऋषभदेव की भहाराजदेवी चक्रेश्वरी की अष्टभुजी गरुडारू सुन्दर मूर्ति और ऋषभपुत्र भगवान बाहुबलि की भी प्रतिमा स्थापित हैं। द्वार के बायी ओर चौंतीसा यन्त्र उत्कीर्ण है। माहुल, गोहल, देवशर्मा, जयसिंह और पीषन के नाम भी फ़र्श, दीवारों आदि पर ऑकेत हैं। ये उस अनुपम मन्दिर के कुशल शिल्पी रहे प्रतीत होते हैं। एक स्थान पर 'आचार्य श्री देवचन्द्र शिष्य कुमुदचन्द्रः' अंकित है। इन मुनिराज का उक्त मन्दिर के साथ उस काल में अथवा कालान्तर में धनिष्ठ सम्बन्ध रहा प्रतीत होता है। सम्भव है कि उक्त देवचन्द्र पूर्वोक्त वासवचन्द्र के शिष्य या प्रशिष्य हों और इस संस्थान के परम्परागत आचार्य हो । मन्दिर नं. 25 के द्वार के स्तम्भ पर भी उक्त दोनों मुनियों के नाम इसी प्रकार अंकित हैं। बहुत सम्भव है कि इस महान मन्दिर का निर्माण स्वयं उक्त श्रेष्टि पाहिल ने किया हो। इसी मन्दिर के निकट घण्टाई, आदिनाथ और शान्तिनाथ के प्रायः उसी काल के अत्यन्त मनोहर जिनालय हैं । ठाकुर देवधर - आचार्यपुत्र ठाकुर देवधर और उनके पुत्रों शिवचन्द्र एवं चन्द्रदेव ने 1025 ई. में खजुराहो में शान्तिनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी। लेख शान्तिनाथ मन्दिर की मूलनायक शान्तिनाथ - प्रतिमा के नीचे ऑकेत है, अतएव सम्भवतया ये ही लोग उक्त मन्दिर के निर्माता और प्रतिष्ठाता थे। श्रेष्ठि पाणिघर-गृहपति अन्वय (गहोई जाति) के श्रेष्ठि पाणिधर और उसके तीन पुत्र त्रिविक्रम, आल्हण और लक्ष्मीधर नामक श्रेष्ठियों ने खजुराहो में 1148 ई. की माघ वदि 5 के दिन एक श्यामवर्ण की जिनप्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी। उन्हीं श्रेष्ठ पाणिधर का नाम उसी वर्ष की वहाँ की दो अन्य प्रतिभाओं पर भी अंकित है। ऐसा लगता है कि उन्होंने भी इस नगर में एक भव्य जिनालय निर्माण कराया था। ये लेख खजुराहो के मन्दिर नं. 27 में प्राप्त हुए हैं, वही वह जिनालय होगा । श्रेष्ठि महीपतिगृहपति (गहोई ) वंश के श्रेष्ठि माहुल के पुत्र श्रेष्ठि महीपति और जात थे। महीपति के पुत्र पापे, कूके, साल्हू टेटू, आल्हू, विवीके और सबपते थे । श्रेष्ठि महीपति ने अपने इस पूरे परिवार सहित 1151 ई. की वैशाख यदि गुरुवार के दिन मण्डलिपुर में नेमिनाथ तीर्थंकर की प्रतिमा प्रतिष्ठित करायी थी । यह प्रतिमा वर्तमान में होर्नियन म्यूजियम लन्दन में है - 1895 ई. में बिककर वहाँ पहुँची थी। श्रेष्ठि बीबतसाह और सेठानी पद्मावती--इस धर्मात्मा दम्पती ने 1085 ई. 246 प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy