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खजुराहो में 84 विशाल मन्दिर बने थे, जिनमें से लगभग आधे ही अब यचे हैं। इनमें मो. जैन-मन्दिरों की संख्या 2 मानी जाती है, किन्तु 22 हो शिखरबन्द हैं और उनमें से भी प्रमुख एवं विशेष दर्शनीय चार हैं-घण्टाई, आदिनाथ, पारसनाथ (जिननाथ) और शान्तिनाथ । इन चार महान् कलापूर्ण जिम मन्दिरों का तथा उस स्थान के अन्य अधिकांश जिनालयों का निर्माण हर्ष चन्दल और उसके । उत्तराधिकारियों यशोवर्मन् अपरनाम लक्षवर्मन (925-54 ई.), धंगचन्देल (954-1002 ई.), गण्ड, विद्याधर, कीर्तिवर्मन और पदनवर्मन् के शासन-कालों में विभिन्न समयों में हुआ। ये सब प्रथल प्रतापी और पराक्रमी तथा कलाप्रेमी नरेश थे। चन्देल सजे प्रायः सब शिवभक्त थे और मनियादेवी उनकी कुलदेवी थी, तथापि वे सर्वधर्म सहिष्णु थे और उनके शासनकाल में जैनधर्म को पर्याप्त प्रश्रय प्राप्त था। धंगचन्देल के प्रथम वर्ष (954 ई.) में ही पाहिल-श्रेष्टि ने जिननाथ का भव्य भवन बनवाकर उसके लिए प्रभूत झन दिया था। विद्याधर के समय में 1028 ई. में खजुराहो के शान्तिनाथ मन्दिर में आदिनाथ की विशाल प्रतिमा प्रतिष्ठापित की गयी थी। कीर्तिवर्मन् के शासनकाल में, 1363 ई. में देवगढ़ में सहस्रकूट-चैत्यालय का तथा 1066 ई. में आहार-मदनपुरा में एक जैनन्दिर का निर्माण हुआ था और 1085 ई. में बीबतसाह ने खजुराहो में एक जिन प्रतिमा प्रतिष्ठित करायी थी। कीर्तिवर्मन के मन्त्री वत्सराज ने 1097 ई. में देवगढ़ का नवीन दुर्ग बनवाकर उसका नाम कीर्तिगिरी रखा था और सम्भवतः उस समय यहाँ कोई जिन-मन्दिर भी बना था। कीर्तिवर्मा के उत्तराधिकारी जयवर्मा के समय में महोबा में, 112 ई. में, कई जिन-प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हुई थीं। बारहवीं शताब्दी के मध्य में चन्देलबरेश मदनवमा भारी निर्माता था। अनेक नगरों, सरोवरों तथा जैन और वैष्णव मन्दिरों का उसमे निर्माण कराया था। उसके समय में महोबा में, 1134 ई. में, रूपकार लाखन द्वारा निर्मित नेमिनाथ प्रतिमा की, उसी शिल्पी द्वारा निर्मित सुमतिनाथ प्रतिमा की 1156 ई. में तथा एक अन्य प्रतिमा की 1146 ई. में प्रतिष्ठा हुई थी। वहीं 115 ई. में साह रनपाल के परिवार ने कई प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करायी थी। सन् 1145 ई., 1158 ई. आदि की जैन-प्रतिमाएँ महोबा से मिली हैं। इस काल में चन्देलों की राजधानी महोबा ही हो चला था। मण्डलिपुर (बुन्देलखण्ड का एक नगर) में महापति नाम के सेट के परिवार ने 1151 ई. में नेमिनाथ-प्रतिमा प्रतिष्ठित करायी थी, और खजुराहो में 1148 ई. में साह पाणिधर ने कई मन्दिर और प्रतिमा प्रतिष्ठित करायी थीं। वहीं 1135 ई. में रूपकार कुमारसिंह द्वारा निर्मित वीरनाथस्वामी (भगवान् महावीर) की प्रतिमा प्रतिष्ठित हुई थी और 1158 ई. में साहु सोले ने सम्भवनाथ का मन्दिर और प्रतिमा प्रतिष्ठापित की धी। मदनवर्मा का उत्तराधिकारी परमादिदेव अपरनाम चन्देल परमाव (1165-1209 ई.) इस वंश का अन्तिम महान नरेश था जगनिक के आह्व-खण्ड ने उसे सर्वत्र प्रसिद्ध कर दिया। उसके शासनकाल में भी अनेक
24 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और पहिला