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________________ खारवल की सन्नाव में उत्पन्न हुआ था। विदर्भ का अचलपुर नगर भी प्राचीन जैन केन्द्र था, जहाँ से 7वीं शती ई. का एक जैन ताम्रपत्र प्राप्त हुआ था। श्वेताम्बराचार्य अवसिंहमूरि मे अपनी 'धर्मोपदेशमाला यति' (856 ई.) में लिखा है कि इस अचलपुर में दिगम्बाम्नाय कामरिकास रामा हारता है, जिसने अनेक महाप्रासाद निर्माण कराके उनमें तीर्थंकर प्रतिमाएँ प्रतिष्ठापित करायी हैं। इसी नगर में 987 ई. में जैनकवि धनपाल ने अपना 'धर्मपरीक्षा' नामक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ स्था था। विदर्भ-मरेश ईल या ऐत (1085 ई.) भी जैनधर्म का अनुयायी और आचार्य अभयदेवसूरि का भक्त था। एलउर (एलोरा) तो और भी पूर्वकाल से जैनतीर्थ रहता आया था। उपर्युक्त 'धर्मोपदेशमाला-वृति' (856 ई.) में ही यह भी लिखा है कि समयज्ञ नामक श्वेताम्बर मुनि भृगुकच्छ से चलकर एलउर नगर आये थे और इस स्थान की दिगम्बर बसही (बसदि या संस्थान) में ठहरे थे। इससे प्रकट है कि इस काल में एक दिगम्बर जैन केन्द्र के रूप में एलोरा की दूर-दूर तक प्रसिद्धि थी। उसके इन्द्रसभा, जगन्नाधसभा आदि गुहामन्दिर उस काल के पूर्व ही निर्मित हो चुके थे। इस प्रकार कलचुरि (चेदि) नरेशों और उनके अधीनस्थ राजाओं, सामन्तों आदि के 'द्वारा घोषित जैनधर्म पूर्व अध्यकाल में महाकोसल, विदर्भ आदि प्रदेशी में डूब फल-फूल रहा था। जेजाकभुक्ति के चन्देलवंशी राजे गुप्त सम्राटों के समय में वर्तमान बिन्ध्यप्रदेश (बुन्देलखण्ड) उनके साम्राज्य की एक प्रसिद्ध भुक्ति (प्रान्त) थी। देवगढ़, खजुराहो आदि उसके प्रमुख नगर थे। इस प्रदेश में कन्नौज के गुर्जर-प्रतिहार नरेशों के सामन्त के रूप में, 831 ई. में नन्नुक चन्देल ने अपने वंश और राज्य की स्थापना की और खर्जुवाहक (खजुराहो) को अपनी राजधानी बनाया । चन्देलों का मूल सम्बन्ध चेदि से रहा प्रतीत होता है और इनका उद्गम भर एवं गोंड जातियों से हुआ अनुमान किया जाता है; यद्यपि में स्वयं को आत्रेय ऋषि और चन्द्र की सन्तान बताते हैं। जो हो, चन्देले राजपूतों का यह राज्य मुसलमान-पूर्व युग के उत्तर भारत के सर्वप्रमुख, समृद्ध एवं शक्तिशाली राज्यों में से था। मम्मुक का उत्तराधिकारी बापति था, जिसके पुत्र जेजा (जयशक्ति, और बेजा) (विजयशक्ति) थे ! जेजा के नाम से ही वह प्रदेश जेजाकभुषित कहलाया, जिसका बिगड़कर जुझीली हो गया। बेजा के बाद राहिल और तदनन्तर इर्ष चन्देल (900-923 ई.) राजा हुआ। इसी के समय से चम्देलों का वास्तविक उत्कर्ष प्रारम्भ हुआ और सम्भवतया खजुराहो के उन जैन, शैव और वैष्णव मन्दिरों का भी निर्माण प्रारम्भ हुआ जो शनैः-शनैः अगले दो-अढाई सौ वर्ष पर्यन्त बनते रहे और जिनके अवशेषों के कारण खजुराहो विश्व-प्रसिद्ध कलाधाम नया देशी-विदेशी पर्यटकों का प्रायः सर्वोपरि आकर्षण केन्द्र आज भी बना हुआ है। कहते हैं कि चन्देल काल में उत्तर भारत :: 245
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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