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गौड़ी-पाश्र्धनाश्च उनके कुलदेवता थे। मुलतान (मूलस्थान) नगर भी जैनों का प्रसिद्ध केन्द्र था और आधुनिक युग तक-पाकिस्तान अनने के पूर्व तक बना रहा
बंगाल is .. बानेश
AAYATRINA का गढ़ रहा। सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इस प्रान्त के समत्तर (याघ्रतटी) पुण्ड्रवर्धन, ताम्रलिप्ति आदि स्थानों में अनेक जिनमन्दिर और निर्गन्ध (दिगम्बर जैन) साधु देखे थे। पुण्ट्रवर्धन से प्राप्त प्राचीन खण्डित जिनप्रतिमा, चटगाँव जिले के सीताकुण्ड के निकट चन्द्रप्रभु और सम्भवनाथ के प्रसिद्ध प्राचीन मन्दिर, टिपस जिले में कमिल्ला के निकट स्थित मैनावती और लालमाई की पहाड़ियों में विद्यमान प्राचीन जिनमन्दिरों के भग्नावशेष, बाँकुडा क्षिते में वर्दमान (बर्धमान) और आसनसोल के मध्य प्राचीन जैन स्तूपों के ऊपर निर्मित ईंटों का सुन्दर बना प्राचीन मन्दिर जिसमें शिवमूर्ति के साथ तीर्थंकर पार्व की प्राचीन मूर्ति अब भी विधमान है, छोटानागपुर में दुलमी, देवली, सुइसा, पाकबीस आदि स्थानों में तथा आसपास अनेक प्राचीन जैनमन्दिर, जिमप्रतिमाएँ, यक्ष-यक्षिणिों की मूर्तियों आदि, और इंगवल-विहार-उड़ीसा के कई भागों में प्राचीन जैन श्रावकों के वंशज सराकजाति के लोग, उस प्रान्त में प्राचीन काल में जैनधर्म के व्यापक प्रसार के सूचक हैं। बंगदेश के विभिन्न भागों में बिखरे उपर्युक्त जैन अवशेष ईसवी सन के प्रारम्भ से लेकर 10वों-11वीं शताब्दी पर्यन्त
कलिंगदेश
कलिंगदेश (उड़ीसा) अति प्राचीन काल से जैनधर्म का गढ़ रहता आया था। जैन सम्राट् पाहामेघवाहन ऐल खारघेल के पश्चात् वहाँ लगभग दो-तीन शताब्दियों तक उसके वंशज्ञों का राज्य चलता रहा। ईसवी सन की प्रथम शताब्दी में उनकी दो शाखाएँ, एक कपिलपुर में और दूसरी सिंहपुर में स्थापित थीं, जिनकी आपसी फूट का लाभ उटाकर सातवाहनों ने इस प्रान्त पर अधिकार कर लिया था। दूसरी शती ई. के अन्त के लगमग कलिंग में इक्ष्वाकु वंश का राज्य स्थापित हुआ। लगभग चौथी शताब्दी तक वहाँ जैनधर्म ही प्रधान बना रहा । बौद्ध ग्रन्थ दायाश के अनुसार उक्त शती में हुए कलिंगनरेश गुहाशिव ने जैनधर्म का परित्याग करके यौद्धधर्म अंगीकार किया था और कहा जाता है कि उसने सय निर्ग्रन्थों को देश से बाहर निकाल दिया था। किन्तु निष्कासन अल्पकालीम ही रहा प्रतीत होता है क्योंकि वीं शताब्दी में हेनसांग ने कलिंग में जैनधर्म और उसके निन्ध मुनियों की विद्यमानता का उल्लेख किया है। जैनसाहित्य के अनुसार उस काल में पुरी जिले का केन्द्रीय नगर पुरिय (पुरिमा या पुरी) अपनी 'जीवितस्वामी' प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध था।
अरमारत ::239