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क्रमशः बाहुक, भूषण और लानाक थे। इनमें पारक या दाहक गुरुजनों के भक्त
और ऐसे कुशाग्रबुद्धि थे कि जिनवाणी-विषधक उनके प्रश्मजाल में गणधर भी विमुग्ध हो जाएँ, और किसी की लो बात क्या? करामानुयोग, चरणानुयोग-विषयक अनेक शास्त्रों में प्रवीण, इन्द्रिय-विषय-त्यागी, दान-तत्पर, शमनियमितचित्त, संसार से विरक्त
और उपासकीय व्रतों के धारी थे। बाहुक की सीडका नाम की पत्नी थी और अम्बट नाम का शुभ लक्षणचाला पुत्र था। बाहुक के छोटे (मझते) भाई संसार प्रसिद्ध भूषण थे जो कल्याण के पात्र, सरस्वती के क्रीड़ागरि, अमल-बुद्धि, क्षमावल्या-कन्द, सक्रिय कृपा के निलय, कामदेव-जैसे रूपवान् बलिष्ठ, कवर के समान सम्पत्तिशाली, विवेकवान्, गम्भीरचित, विद्याधर-जैसे, जैनेन्द्रशासन-सरोवर-राजहंस, मुनीन्द्रपादकमलढ्य-चंचरीक, अशेष-शास्त्र-सागर में अवगाहन करनेवाले, सीमन्तिनी-नयनकैरव-धारुचन्द्र, विदग्ध-जनवल्लभ, सरस सार-शृंगारवानुदार-चरित, सुभग, सौम्यमूर्ति, सुधी, सबको सुख देनेवाले, भयंकर विपत्ति में भी स्थिरपति रहनेवाले और वैभव के शिखर पर रहते हुए भी अत्यन्त विनता या कोक भूषण की लक्ष्मी
और सीली नाम की चरित्रगुण-भूषित एवं पतिव्रता दो भायाएँ थीं। साली से भूषण के आलोक, साधारण, शान्ति आदि पुत्र हुए जो सुयोग्य, गुरु-देव भक्त और स्वबन्धु-चिताजविकासभानु थे। भुषण का छोटा भाई लल्लाक निल्न देव पूजा करनेवाला और अपने माई (भूषण) का आज्ञाकारी था। अपने इस भरे-पूरे परिवार में सांसारिक सुखों का उपभोग करले एा भूषणा से ने चिन्तयन किया कि आय तो लुप्त-लोहे पर बड़ी जलबिन्दु के समान नश्वर है और लक्ष्मी विपकर्ण से भी अधिक चंचला है, अतएव शास्त्रों से सात सुनिश्चित रूप से जानकर कि अपने वश की स्थायी बनाने और परमार्थ साधने का उपाय पृथ्वी का आभूषण हो ऐसा जिनगृह बनाया जाए, भूषण ने इणक नगर (गरपुर का अधूणा नामक स्थान) में श्री वृषभनाथ भगवान् का भव्य जिनालय निर्माण कराकर वि. सं. 1166 (सन् 1109 ई.) की वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया) सोमवार के दिन उसमें भगवान् की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की। उस समय उक्त प्रदेश पर धाराधिप सिन्धुराज परमार के मण्डलीक कन्ह के पौत्र और यामुराष्ट्रराज के पुत्र विजयराज का शासन था, जो स्वयं सम्भवतया परमारवंशीय ही था। श्रावक भूपण की इस प्रशस्ति को बुध कटुक ने तथा भाइलवंशी द्विज साव के पुत्र भादुक ने रचा था, बलभी कारस्थ राजपाल के पत्र सन्धिविग्रहिक-मन्त्री वासव ने उसे लिखा र रजिस्ट्री किया था, और वैज्ञानिक सूमाक ने उसे उत्तीर्ण किया था।
सिन्ध देश
सिन्ध प्रान्त अब पाकिस्तान) में गौड़ी-पार्श्वनाथ का प्रसिद्ध जैन तीर्थ श्या। वहाँ पौरनगर (पारकर के सोडवंशी राजपूत राजे 11वीं-12वीं शती में जैन थे और
298 :: प्रमुरत गिनासिक जैन पुरुष और महिला