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________________ 1001 अयोध्या के श्रीवास्तव राजे उत्तरप्रदेश के अवध आदि पूर्वी भागों में बहलता के साथ पायी जानेवाली कायस्थों की प्रसिद्ध उपजाति श्रीवास्तव का निवास मूलतः श्रावस्ती नगरी से हुआ बताया जाता है। इनके एक नेता चन्द्रसेनीय श्रीवास्तव त्रिलोकचन्द्र में 918 ई. में सरयूनदी को पार करके अयोध्या पर अधिकार किया और यहाँ अपना व्यवस्थित राज्य जमाया था। उसके वंशज वहाँ लगभग 300 वर्ष तक राज्य करते रहे। उनके राज्य का अन्त ५वीं शताब्दी के अन्त के लगभग (1294 ई. में) मुहम्मद गोरी के भाई मखदूमशाहजूरन गोरी ने किया। उसी ने अयोध्या का भगवान ऋषभदेव का प्राचीन मन्दिर ध्वस्त करके उसके स्थान पर मस्जिद बनायी थी। भगवान आदिदेव ऋषभ के उक्त जन्मस्थान पर, जो 'शाहजूरन का टीला' नाम से प्रसिद्ध है, उक्त भग्न मस्जिद के पीछे भगवान की टोंक अभी है। श्री पी. कारनेगी (1870 ई.) के अनुसार अयोध्या का यह सरयूपारी श्रीवास्तव राज्य-वंश जैन धर्मानुयायी था। अनेक प्राचीन देहरे (जिनायतन), जो वर्तमान काल में प्राप्त हैं, वे मूलतः इन्हीं श्रीवास्तव राजाओं के बनवाये हुए थे; यद्यपि इधर उनमें से जो बचे थे उनका जीर्णोद्धार हो चुका है। अवध सजेटियर (1877 ई.) से भी इस बाध्य की पुष्टि होती है सीताराम कृत अयोध्या के इतिहास में भी लिखा है कि 'अयोध्या के श्रीवास्तव अन्य कायस्थों के संसर्ग से बचे रहे तो मद्य नहीं पीते और बहुत कम मांसाहारी हैं। इसी से अनुमान किया जा सकता है कि यह लोग पहले जैन ही थे।' अवध आदि के भर राजे जिस काल में श्रावस्ती में ध्यज और अयोध्या में श्रीवास्तव राजाओं का शासन था, उत्तरप्रदेश के पूर्वी जिलों में अनेक स्थानों पर छोटे-छोटे भर राज्य स्थापित थे। ये भर लोग पुराने भारशिव नागों के वंशज थे, या अन्य आदिम वात्य जातियों की सन्तति में से थे, किन्तु थे वीर, स्वतन्त्रता के उपासक और ब्रामण विद्वेषी । राजपूत लोग भी उनसे घृणा करते थे और राजपूतों एवं मुसलमानों ने मिलकर ही अन्ततः 14वीं-15वीं शती तक उनकी समस्त सत्ताओं का अन्त कर दिया। फैजाबाद, रायबरेली, उन्नाव आदि जिलों से भरों के समय की अनेक जिन-मूर्तियाँ मिली हैं। अँगरेश सर्वेक्षक कारभेगी, कनिधम आदि का भी मत है कि उस काल के ये भर लोग जैनधर्म के अनुयायी थे। मेवाड़ के गुहिलोत राणा राजस्थान के मेवाड़ (भेदपाट) प्रदेश की पुरानी राजधानी चित्तौड़ (चित्रकूटपुर) प्राचीन काल में भी एक प्रसिद्ध नगरी थी। आठवीं शती ई. के मध्य तक वहाँ इसर भारत::235
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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