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कि एक होनहार जैन युनिक के साथ राजा ने अपने वंश की एक राजकन्या भी विवाह दी थी। ये जैसवाल बड़े पुरुषार्थी और प्रभावशाली थे। आसपास के कई राज्यों में राज्यश्रेष्टि, मन्त्री आदि पद पाते रहे। कवि लक्ष्मण-जैसे विद्वान् लाहित्यकार भी इस काल में उनमें हुए। श्वेताम्बर यत्तियों का भी इस राजधानी में आना-जाना था और 1044 ई. में उन्होंने वहाँ कोई प्रतिष्ठोत्सव किया था। उक्त दुर्ग और बयाना में उस काल के दिगम्बर जैन-मन्दिरों और मूर्तियों के अवशेष अभी तक प्राप्त होते हैं। त्रिभुवनपाल का पुत्र हरपाल था जिसका पुत्र कोशपाल था। कोशपाल का पुत्र यशपाल इस वंश का अन्तिम राजा रहा प्रतीत होता है। 12वीं शती के अन्त में लगभग मुसलमानों ने बयाना पर अधिकार कर लिया। कालान्तर में बवाना के इन्हीं यादों के वंशज करौली के राजाओं के रूप में चले आये।
अलवर के बड़गूजर
10वीं से 12वीं शती ई. के मध्य किसी समय बडगुजर राजा बाघसिंह ने (अलवर के निकट) राजगढ़ नाम का नगर बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया था
और उसके बाहर बधोला-बौंध का निर्माण कराया था। यह राजा जैनधर्मानुयायी रहा प्रतीत होता है। उस काल की अनेक जैन-मूर्तियों और मन्दिरों के अवशेष उक्त राजगढ़ के खंडहरों में प्राप्त हुए हैं। सम्भवत नही राजमह कर अपशाम सागर.. था। राजा लक्ष्मीनिवास के राज्यकाल में कुम्मनगर में दुर्मदेव ने 'सिष्ट समुच्चय शास्त्र की 1032 ई. में रचना की थी और कुम्भनगर में ही कालान्तर में भीमभूपाल के समय में पं. बोगदेव ने 'तत्त्वार्थ सूत्र-सुबोधवृत्ति' की रचना की थी। श्रावस्ती के ध्वजवंशी राजे
प्राचीन कोसल राज्य की उत्तरक्ती राजधानी श्रावस्ती (उत्तरप्रदेश के बहराइच जिले का सहेट-महेट) में 9वीं-11वीं शताब्दी में एक जैनधर्मानुयायी वंश का राज्य था, जिसमें सुधन्वध्वज, मकरध्वज, हंसध्वज, मोरध्वज, सुहिलध्वज और हरिसिंहदेव नाम के राजा क्रमशः हुए। यह यंश, सम्भव है सरयूपारवती कनपुरियों (चेदियों) की कोई शाखा हो, अथवा प्राचीन भर-जातीय हो । उन दोनों में ही जैनधर्म की प्रवृत्ति थी। मोरध्वज का उत्तराधिकारी सुहिलध्वज या सुहेलदेव बड़ा वीर और पराक्रमी होने के साथ ही साथ जिनभक्त था। उसने 1033 ई. के लगभग महमूद गजनवी के पुत्र के सिपहसालार सैयद-मसऊद-गाजी को बहराइच के भीषण युद्ध में बुरी तरह पराजित करके ससैन्ध समाप्त कर दिया बताया जाता है। स्थानीय लोककथाओं और किंवदन्तियों में धीर सुहेलदेव प्रसिद्ध है और उससे उसका जैम होना भी प्रकट है। सुहेलदेव का पौत्र हरिसिंहदेव इस वंश का अन्तिम नरेश था, जिसके सज्य का अन्त 1134 ई. के लगभग कन्नौज के गहड़वालों ने कर दिया।
25 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ