________________
के उत्तरों के आधार पर ही विपुल जैन साहित्य की रचना हुई। महाराज्ञी चलना श्राविका-संघ की नेत्री ई उस संघ में लगभग तीन लाख श्रान्तिकाएँ रही, बत्ताबी जाती हैं। चेलमा ने स्वयं श्राविका के व्रत लिये थे और अपनी दस सपत्नियों सहित आर्यिका संघ की अग्रणी महासली चन्टमा के निकट धर्म का अध्ययन किया था। उनके पुत्र, पुत्रवधाएँ, पौत्र-पौत्रियों, आदि भी सब भगवान के उपासक हुए। इस प्रकार श्रेणिक का प्रायः सम्पूर्ण परिवार ही महावीर का परम भक्त था। अनगिनत प्रजाजनों ने भी राजपरिवार का अनुकरण किया। अत: इसमें क्या आश्चर्य है जो महाराज श्रेणिक का नाम जैन इतिहास में स्वर्णाक्षरों में ओंकेत है।
लगभग पचास वर्ष राज्य सुख भीगने के उपरान्त महाराज श्रेणिक ने महारानी चेलना से उत्पन्न राजकुमार कुणिक अपरनाम अजातशत्रु को राजपाट सौंपकर एकान्त में भ्रमंध्यानपूर्वक शेष जीवन बिताने का निश्चय किया। राज्यसत्ता हस्तगत होने पर कुणिक ने गौतम बुद्ध के चचेरे भाई देवदत्त के, जो स्वयं एक स्वतन्त्र धर्माचार्य बनने का स्वप्न देखता था, बहकाने से अपने पिता श्रेणिक को बन्दीगृह में डाल दिया। माता चेलना के भत्सना करने पर उसे पश्चाताप हुआ और वह पिता को बन्धनमुक्त करने एवं उससे समा माँगने के लिए बन्दीगृह में गया। श्रेणिक उससे अत्यधिक स्नेह करता था, परन्तु उसे इस प्रकार आता देखकर वह समझा कि कणिक उसकी हत्या करने आया है, अताप बन्दीगृह की दीवारों में सिर फोड़कर (मतान्तर
से अँगूठी में छिपा विष भक्षण कर) श्रेणिक ने आत्मघात कर लिया। इस प्रकार इस starrer प्रताप एक धमामा परेश तयाँ मगध के प्रथम ऐतिहासिक सम्राट का दुखान्त
हुआ। मन्त्रीश्वर अभय
श्रेणिक बिम्बसार के सुशासन, उतम राज्य व्यवस्था, स्पृहणीय न्यायशासन, समृद्धि, वैभव एवं राजनयिक उत्कर्ष का श्रेय अनेक अंशों में उनके इतिहास-विश्रुत बुद्धिनिधान मन्त्रीश्वर अभयकुमार को है, जो द्रविड़देशीय ब्राह्मण पत्नी नन्दश्री से उत्पन्न स्वयं उनके ही क्येष्ठ पुत्र थे। एक मत के अनुसार अभय की जननी नन्दा या नन्दश्री दक्षिण देश के वेश्यात नामक नगर के धनावह नामक श्रेष्टि की पुत्री थी। कुछ भी हो, अभय राजकुमार की ऐतिहासिकता में कोई सन्देह नहीं है। दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं में ही नहीं, प्राचीन बौद्ध आगम मज्झिमनिकाय में भी निर्गठनातपुत्त (निर्गन्थ ज्ञातृपुत्र-महावीर) के एक परम भक्त के रूप में उनका उल्लेख हुआ है, और यह भी कि एक बार उन्होंने शाक्यपुत्र गौतम बुद्ध का भी आदर-सत्कार किया था। इस तथ्य से राजकुमार अभय की उदारता, सौजन्य एवं परधर्मसहिष्णुता का भी परिचय मिलता है। जैन इतिहास में तो भगवान महावीर के परम भक्त, एक प्रमा, शीलवान्, संयमी श्रावक होने के अतिरिक्त एक अत्यन्त
पहावीर-युग :: 29