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महाराज्य का रूप दे दिया था। इतना ही नहीं, भारतवर्ष के प्रथम पतहासिक साम्राज्य (मगध साम्राज्य) की सुदृढ़ नींव सम्म दी थी। वह कुशल शासक भी था । उसके सुराज्य में किसी प्रकार की अनीति थी और न किसी प्रकार का भय था। प्रजा भली प्रकार सुखानुभव करती थी। देश की समृद्धि की उत्तरोत्तर वृद्धिंगत करने की और भी उसका पूरा ध्यान था। विभिन्न व्यवसायों, व्यापारों एवं उद्योगों का उसके आश्रय एवं संरक्षण से विविध श्रेणियों एवं निगमों में संगठन हुआ, इसी कारण उसे श्रेणिक' नाम प्राप्त हुआ बताया जाता है। सर्वप्रकार की आन्तरिक स्वातन्त्र्य-सत्ता से युक्त इम जनतन्त्रात्मक संस्थाओं द्वारा उसने साम्राज्य के “उद्योग-धन्धी, व्यवसाय और कार को भारी प्रासन दिया। बीसियों कोट्यधीश श्रेष्ठि और सार्थवाह उनके सज्य के वैभव की अभिवृद्धि में संलग्न थे। उपर्युक्त श्रेणियों ही आगे चलकर वर्तमान जातियों के रूप में धीरे-धीरे परिणत हो गयीं। सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार जनपदों का पालक एवं पिता कहा गया है। वह दयाशील एवं मर्यादाशील था, साथ ही बड़ा दानवीर और भारी निर्माता भी था। राजधानी के पुनर्निमाण एवं उसे सर्वप्रकार सुन्दर बनाने के अतिरिक्त उसने सिद्धाचल-सम्मेदशिखर पर जैन निषिधकार तथा अन्यन्त्र अनेक धिनायतन, स्तूप, चैत्यादि भी निर्माण कराये बताये जाते हैं। राजगृह नगर में तो भीतर-बाहर अनेक उत्तुंग जिनालय उसने बनवाये थे। नगर के प्राचीन अवशेषों में उसके समय की मूर्तियाँ आदि भी मिली बतायी जाती हैं। अन्य धर्मों के प्रति भी वह सहिष्णु धा। मौसम बुद्ध गृह त्याग करने के उपरान्त जब सर्वप्रथम राजगृह आवे थे तो श्रेणिक ने स्नेहपूर्वक उस तरुषा क्षत्रिय
भार को तप-मार्ग से विस्त करने का प्रयत्न किया था। प्रारम्भ में श्रेणिक जैनधर्म विरोधी और विशेषकर जैनमुनि विद्वेषी हो गया था 1 एकदा यमधर नामक मुनिराज पर उसने भयंकर उपसर्ग किये, कहा जाता है। अनाथी नामक जैनमुनि के उपदेश से उसमें कुछ सौम्यता आधी, किन्तु मुख्यतया यह उसकी प्रिय पत्नी एवं अग्रमहिषी महारानी चेलमा का सुप्रभाव था कि श्रेणिक जैनधर्म और भगवान महावीर का अनन्य भक्त हो गया। चेलमा स्वयं महावीर की मौसी (या ममेरी बहन थी। वह अत्यन्त पति-परायणा, विदुषो और धर्मात्मा थी। तीर्थकर महावीर का प्रथम समवसरण श्रेणिक की राजधानी के ही एक महत्वपूर्ण भाग विपुलाचल पर जुड़ा था और वहीं ईसा पूर्व 5.57 की श्रावण कृष्ण प्रतिपक्ष के प्रातःकाल, अभिजित नक्षत्र में, भगवान की सर्वप्रथम सार्वजनिक धर्मदेशना हुई थी। महाराज श्रेणिक सपरिवार एवं सपरिकर उक्त समवसरण सभा में उपस्थित हुआ था, आपकोतम कहलाया था और भगवान् के श्रावक-संघ का भेता बना था, जिसमें एक-डेढ़ लाख पुरुष श्रावक सम्मिलित थे। कहा जाता है कि राजमह में भगवान का समवसरण दो सौ बार आया था और इन समवसरणों में श्रेणिक ने गौतम गणधर के माध्यम से भगवान से एक-एक करके साठ हजार प्रश्न किये थे, और उन्होंने उन सबका समाधान किया था। उक्त प्रश्नों
28 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिला,