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________________ पंचशैलपुर भी सामान्य नगर था । श्रेणिक के कुमारकाल में ही उसके पिता ने किसी कारण कुपित होकर उसे राज्य से निर्वासित कर दिया था और द्वितीय पुत्र को, जिसका नाम चिलति पुत्र था, अपना उत्तराधिकार सौंप दिया था। अपने निर्वासन काल में श्रेणिक ने देश-देशान्तरों का भ्रमण करके अनुभव प्राप्त किया। जब वह सुदूर दक्षिण देशस्थ कांचीपुर में प्रवासित था तो उसने वहाँ नन्दश्री नामक एक रूप गुण सम्पन्न विदुषी ब्राह्मण कन्या से विवाह कर लिया, जिसका पुत्र सुप्रसिद्ध अभय राजकुमार हुआ। उसी काल में श्रेणिक कतिपय जैनेतर पण साधुओं के सम्पर्क में आया, उनका भक्त हो गया और जैनधर्म से विद्वेष करने लगा, यद्यपि उसका पितृकुल तीर्थंकर पार्श्व की जैन परम्परा का अनुयायी था । श्रेणिक का भाई चितातिपुत्र राज-काज से विरक्त रहता था और अन्ततः उसने वैभारपर्वत पर दत्त नामक जैन मुनि से दीक्षा ले ली। परिणामस्वरूप श्रेणिक को बुलाया गया और मगध के सिंहासन पर आसीन किया गया। राज्य हस्तगत करते ही श्रेणिक ने राजधानी का पुनर्निर्माण किया, शासन की सुव्यवस्था की, अपनी राज्य-शक्ति को संगठित किया और उसका सर्वतोमुखी विकास एवं विस्तार करने में वह जुट गया। इन कार्यों में उसे अपने अत्यन्त चतुर पुत्र अभयकुमार से बड़ी सहायता मिली। श्रेणिक की Retariat का आभास पाकर उसके पड़ोसी वज्जिसंघ के अध्यक्ष वैशाली नरेश चेटक तथा कोसलाधिपति प्रसेनजित् की संयुक्त सेनाओं ने मगध पर आक्रमण कर दिया। अवसर के पारखी श्रेणिक से तुरन्त स कर ली। यही नहीं चेटक की पुत्री चेतना और कोसल की राजकुमारी कोशलदेवी (प्रसेनजित् की बहन ) के साथ विवाह करके उन दोनों शक्तिशाली पड़ोसी राज्यों की स्थायी मैत्री के सूत्र में बाँध लिया। उसने भद्र की राजकुमारी खेमा के साथ भी विवाह किया। बेटक-सुता चेलना उसकी पट्टमहिषी रही। किन्हीं ग्रन्थों में श्रेणिक की इस पत्नियाँ होने का उल्लेख मिलता है। अभयकुमार, कृणिक (अजातशत्रु), वारिषेण, मेघकुमार, नन्दिषेण, अक्रूर, हल्ल, विहल्ल, जितशत्रु दन्तिकुमार आदि उसके ग्यारह पुत्रों और उस पौत्रों के होने का उल्लेख मिलता है। विवाह सम्बन्धों द्वारा अपनी स्थिति सुदृढ़ करके श्रेणिक ने एक ओर तो काशी जनपद को अपने राज्य में मिलाया और दूसरी ओर अंगाधिपति दधिवाहन को पराजित करके उनके पूरे देश एवं राजधानी चम्पापुर पर अधिकार कर लिया और वहाँ राजकुमार कुणिक को अपना राज्य- प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया । एक सीमान्त-देशीय मित्र राजा की सहायतायं श्रेणिक ने सेठ-पुत्र वीर अम्बुकुमार को भेजा था जिसने अत्यन्त पराक्रमपूर्वक उक्त अभियान को सफल बनाया था। पारस्य (ईरान) के शाह के साथ भी श्रेणिक ने राजनीतिक आदान-प्रदान किया प्रतीत होता हैं। अपने लगभग पचास वर्ष के राज्यकाल में इस महत्त्वाकांक्षी, प्रतापी एवं यशस्वी नरेश ने छोटे से मगध राज्य को बढ़ाकर उस काल के प्रायः सर्वाधिक शक्तिशाली महावीर : 27
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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