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________________ दीक्षा लेने का विचार किया। युवराज अभीषकुमार को राज्यभार लेने के लिए कहा तो उसने अस्वीकार कर दिया और उमारे साप ही दीक्षा लेने की तुरत कशी । अतएर मानजे केशिकुमार को राज्य देकर राजर्षि उदायन पत्नी और पुत्र सहित संसार स्यागकर मुनि हो गये। श्रेणिक विम्बसार - भगवान महावीर के अनन्य भक्तों और उनके धर्मतीर्थ के प्रभावकों में मगधनरेश श्रेणिक बिम्बसार का स्थान सर्वोपरि है। भगवान् का जन्म और अभिनिष्कमण लो विदेह देशस्थ जन्मभूमि कुण्डलपुर में हुए, किन्तु उनकी साधना और तपस्या काल का अधिक भाग मगध के विभिन्न स्थानों में ही व्यतीत हुआ। वहीं द्वादशवर्षीय साधना के उपरान्त भ्भिक ग्राय के बाहर, ऋजुपालिका नदी के तटवर्ती एवं गृहपति श्वामाक के करषण (कृषि क्षेत्र) के निकटस्थ वैवावृत्य चैत्योद्यान के ईशान कोण में शालवृक्ष के नीचे एक शिला पर सन्ध्याकाल में उन्हें कैवल्य की प्राप्ति हुई थी। तदनन्तर मगधदेश में ही स्थित मध्यमा पावा में सोमिल ब्राह्मण के महायज्ञ में सम्मिलित गौतम गोत्रीय इ-भूति आदि प्रख्यात ब्राह्मणाचार्यों पर भगवान् के सम्पर्क का अद्भुत प्रभाव पड़ा। अपने सैकड़ों-सहत्रों शिष्य परिवारों सहित वे भगवान् के अनुगामी हुए । मगधराज की राजधानी राजगृह के विपुलाचल पर्वत पर ही भगवान् का इतिहास विश्रुत सर्वप्रथम सार्वजनिक उपदेश हुआ, उनके धर्मचक्र का प्रवर्तन हुआ और जयघोष के साथ वीर-शासन का प्रारम्भ हुरा ! आगामी तीस वर्षों के तीर्थंकर काल में भी सर्वाधिक धार भगवान् का समवसरणा राजगृह में ही आया । भगवान् का निर्माण भी अन्तत: मगध राज्य में स्थित उक्त, मध्यमापावा या पावापुरी में ही हुआ माना जाता हैं। मगध के साथ भगवान महावीर और उनके तीर्थकरत्व की इतनी निकटता एवं धनिष्ठता का प्रधान कारण अवश्य ही मगधाधिपति महाराज श्रेणिक और उनके प्रायः सम्पूर्ण परिवार की भगवान के प्रति अनन्य भक्ति, श्रद्धा और प्रेम थे। पूर्वकाल में मगध पर महाभारतकालीन धृहद्रथ के घंशजों का राज्य था, जिसका अन्त एक राज्यक्रान्ति में हुआ और माध के सिंहासन पर काशी के नाम (उरग) वंश का शिशुनाग नामक एक वीर पुरुष आसीन हुआ 1 एक पत से शिशुनाग के पूर्वजों का मूल-निवास वाही प्रदेश था, इसलिए कहीं-कहीं इसे बाहीक कुल भी कहा गया है। शिशुनाग का पुत्र शैशुनाक था-यह वंश भी इतिहास में शैशुनाक नाम से ही अधिक प्रसिद्ध रहा है। हिन्दु पराणों के अनुसार शैशनाक का ही पुत्र उपरोक्त श्रेणिक था, किन्तु बौद्ध ग्रन्थों में श्रेणिक के पिता का नाम भट्टि और जैन परम्पस में प्रसेनजित नथा उपश्रगिक पाया जाता है। उस समय मगध एक साधारण सा ही राज्य था और उसकी राजधानी राजगाः अपरनाम गिरिव्रज तथा 26 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिला
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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