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नेमि-जिनालय बनवाया था लश्या अष्टापदशैलग पर भी जिनालय बनवाये थे। यह श्रेरिप्रवर सीधक न्यायाम्बरसेचनक-जलद, कीर्तिनिधान, सौजन्याम्बुजनि-विकासन-चिः, पापाद्रिभेद-पविः, कारुण्यामृत-बारिधि और साधुजनोपकार-करण-ध्यापार-बद्धादर था। नागश्री और मामटा नाम को उसकी दो भारि थीं। पहली से नागदेव, लोलार्क और अज्ज्वल माम के तीन और दूसरी से महीधर एवं देवघर नाम के दो पुत्र हुा । सीयक सेट के ये पाँचों सुपुत्र पंचाचार-परायण, पंचांगमन्त्रीज्ज्चल, पंचज्ञान-विचारणासुचतुर, पंधेद्रियालिबानी, श्रीमत्पत्तगुर स्मामालनमः और पचण अद्वयुताः थे। उज्ज्वल सेठ के यशस्वी पुत्र दुर्लभ और लक्ष्मण थे। श्रेष्ठि लोलार्क की रूपगुण सम्पन्ना एवं पतिपरायणा तीन पत्नियों थीं, जिनके नाम ललिता, कमलश्री और लक्ष्मी थे। इनमें से सेठ को सेठानी ललिता विशेष प्रिय श्यो। एकदा सेठानी ललिता ने अपने प्रासाद में सुखपूर्वक शयन करते हुए एक सुन्दर स्वप्न देखा, जिसमें नामराज धरणेन्द्र ने उससे कहा कि श्री पार्श्वनाथ भगवान का प्रासाद बनवाओ। सेठानी ने अपने पति ले स्वप्न की बात कही और अनुरोध किया कि रेयत्ती-तीरवर्ती पार्श्वनाथ तीर्थ का उद्वार करें। असत, जलधि के समान गम्भीर, सूर्य के समान स्थिर-अंचल तेजस्वितावाले, चन्द्रमा के समान सौम्य और गंगा के समान पवित्र, पंधाणुव्रतधारी, पंचपरमेष्ठि के परम भक्त, सुकृति, ज्ञानी, दानी, उदार और धर्मात्मा श्रेष्ठि शिरोमणि लोलाई (लोलाक) ने धनधान्य-पूर्ण विन्ध्यवल्ली (बिजौलिया) के उस भीपाटयी नामक वन में जहाँ दुष्ट कमठ ने भगवान् पार्श्वनाथ पर यह पुराणप्रसिद्ध घोर उपसर्ग किया था, पार्वतीर्थ का उद्धार करने का संकल्प किया। उक्त स्थान में सुप्रसिद्ध रेवतीकुण्ड के तट पर उसने अत्यन्त भव्य एवं उत्तुंग पार्श्वनाथ-जिनालय बनवाया
और उसके चहुँओर छष्ट अन्ध जिनमन्दिर इनवाये । इस सप्तायसन के अवशेषों पर ही कालान्तर में वह पंचायतन या पौंच मन्दिरों का समूह-पाक मध्य में और सार-चार कोनों पर--बना जो बिजौलिया-तीर्घ पर विद्यमान है। श्रेष्ठि लोलार्क ने निकट ही एक चट्टान पर उन्नतिशिखर-पुराण नामक ग्रन्थ पूरा-का-पूरा उत्कीर्ण करा दिया था
अन्यत्र इसकी कोई प्रति उपलब्ध नहीं है) और एक अन्य शिला पर अपनी यह बृहत् प्रशस्ति अंकित करायी थी जिसमें चौहान नरेशों की वंशावली और अपने पूर्वपुरुषों का तथा उसके धर्मकार्यों का उल्लेख करने के पश्चात् स्वधं उसके धर्मकायों का विवरण है। मन्दिरों का निर्माण कराके सेठ ने यहाँ एक महान् प्रतिष्ठोत्सव एवं पूजोत्सव किया, जिसमें असंख्य जनता एकत्र हुई, नृत्य-गीत-याच आदि सहित अनेक उत्सव हुए। ये समस्त धर्म-कार्य सेठ ने अजयमेरु (अजमेर) के चौहान नरेश प्रतापलंकेश्वर सोमेश्वर के आश्रय में उसकी सहमतिपूर्वक विक्रम संवत 1226 (सन् 1969 ई.) को फाल्गुन कृष्मा सृतीया, गुरुवार के दिन, हस्तनक्षत्र, धृतियोग और तैतिल-करण में निष्यन्न किये थे। उस अवसर पर सेठ ने तथा विभिन्न ग्रामों के अनेक धार्मिक जनों ने तीर्थ के लिए भूमि आदि के दाम भी दिये थे।
५५ :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिला