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जामाला और सुप्रसिद्ध रायपिथौरा (पृथ्वीराज तृतीय) का पिता, सोमेश्वर अपरनाम यहड, अजमेर के चौहानों में जैनधर्म का सर्वाधिक पोषक एवं भक्त नरेश था और 1 श्यौं शताब्दी ई, के मध्य के लगभग विद्यमान था। वह बड़ा धीर और पराक्रमी था, अतः 'प्रतापलंकेश्वर' कहलाता था। स्वर्ग प्राप्ति की आकांक्षा से इस नरेश में रेवात्तट स्थित श्रीपापीनाथ-जिनालय के लिए रेवण नाम का ग्राम दान दिया था। बिजोलिया पार्श्वनाथ का प्रसिद्ध मन्दिर भी उसके द्वारा अथका उसके आश्रय में निर्मित हआ था। उस तीर्थ पर उसके एक धर्मात्मा श्रावक श्रेस्ठिलालाक ने तो 1 169 ई. में अनेक निर्माण कार्य एवं उत्सव उसकी सहमति एवं सहयोगपूर्वक किये थे। जख सोमेश्वर दिल्ली आया था तो सम्भवतया उसने अपने नगरसेठ, अजमेर के देवपाल सोनी के साथ हस्तिनापुर तीर्थक्षेत्र की भी यात्रा की थी। उसी अवसर पर उक्त देवपाल सोनी ने हस्तिनापुर में 1176 ई. में भगवान शान्तिनाथ की एक खड्गासम विशाल पुरूषाकार मनोज प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी। लगभग चालीस वर्ष हुए उक्त स्थान के एक टीले की खुदाई में वह मूर्ति प्राप्त हुई थी। साथ चुरक्षा के पुत्र हालू ने अजमेर में 1177 ई. में पार्श्वप्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी। 1182 ई. में लाहड की पत्नी तोली ने तथा अन्य साम श्राविकाजी मल्लिनाव की प्रतिमा और आर्यिका मदनश्री ने समस्त गोष्ठिकों के सहयोग से माणिक्यदेव के शिष्य सोमदेव की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी। अजमेर में ही साधु हालण के पुत्र वर्धपान ने तथा महीपाल ने 1187 ई. में वासुपूज्य-प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी, और महीपालदेव की सम्मानित माता श्राविका आस्ता ने 1390 ई. में पार्श्व-प्रतिमा प्रतिष्ठित की थी। ये प्रतिष्ठाएँ दिल्ली-अजमेर के चौहान राजा पृथ्वीराज तृतीय के समय में हुई थी।
श्रेष्ठ लोलार्क-श्रीमाल शैलप्रवर के प्राग्वाट (पोरवाई) वंश में उत्पन्न वैश्रवण नामक धर्मात्मा श्रावक ने मनोहर क्षेत्र तडागपतन में एक जिममन्दिर समवाया था। उसके पत्र श्रेष्ठ चच्चुल ने व्याप्रेरक आदि स्थानों में जिनमन्दिर बनवाये थे। वह सद्बुद्धि, परोपकारी और यशस्वी था। उसका पुत्र कीर्तिवान शुभंकर था, जिसका पुण्यवान पुत्र श्रेष्ठि जासट था। आमुख्या और धा नाम की जास्ट की दो पलियों थीं। पहली से अम्बर और पघट और दूसरी से लक्ष्मट और देसल नाम के पुत्र हुए थे। इन भाइयों ने कई जिनमन्दिर बनवाये थे। लक्ष्मट के मुनीन्दु
और रामेन्दु नाम के गुणवान् एवं समानशीलवाले दो पुत्र थे और देसल के दुद्दल नायक, मोसल, कामजित, देव, सीयक और साहक नाम के छह पुत्र थे जो षट्कर्मदक्ष, षट्खण्डागम के भक्त, षडिन्द्रियों को वश में करनेवाले, शाङ्गुष्य-चिन्ताकरा इत्यादि गुणसम्पन्न थे। इन भाइयों ने अनेक धर्मोत्सव किये थे और अअमेर नगर का आभूषण देयेन्द्र विमान-जैसा सुन्दर श्री वर्धमान भगवान् का मन्दिर बनवाया था। इन भाइयों में से प्रेष्ठिभूषण सीयक ने मेण्डणकर महादुर्ग को जिन-मूर्तियों से अलंकृत किया था और देवाद्रिश्रृंग (देवगढ़) पर स्वर्णकलशों से मण्तुित चमचमाता
उत्तर भारत:- 225