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सभ्यन्धी था आश्रित) बयरसिंह को भाया फाउ, पुत्रों साइआ और मेलामेला तथा पुत्रियों रुड़ी एवं गांगी ने उक्त नेमिनाथ जिनालय बनवाकर इसे भद्रसूरि के पट्टधर मुनिसिंह (भन्द्र) द्वारा प्रतिष्ठित कराया था। वह प्रतिष्ठा फाल्गुन शुक्ल पंचमी गुरुवार को हुई थी। वर्ष नहीं दिया है, किन्तु अनुमान यही किया जाता है कि यह लेख उक्त भोजदेय के समय का है।
मिहिरभोज का पुत्र महेन्द्रपाल प्रथम 1885-906 ई.) भी शक्तिशाली शासक और विद्वानों का प्रश्रयदाता था। तदनन्तर भोज द्वितीय (108-9144 ई.) और महीपाल (91-940 ई.) राजा हए । सम्भव है उपर्युक्त गिरनार शिलालेख का महोपाल यही राजा हो। उसका उत्तराधिकारी महेन्द्रपाल द्वितीय (940-946 ई.) भी भारी विद्याप्रेमी था। जैनाचार्य सोमदेव ने इसी राजा के लिए राजनीतिशास्त्र के अपने महान ग्रन्थ "मीतिवाक्यामृत' एवं 'महेन्द्र-माललि संजल्प' की रचना की थी, ऐसा विश्वास करने के कारण हैं। तदुपरान्त देवपाल आदि यशपाल पर्यन्त कई राजा हुए, किन्तु गुर्जरप्रतिहारों की यह अवनति का काल था। महमूद गजनवी के आक्रमण ने उनकी सत्ता पर मारणान्तिक आघात किया। कुछ दशकों तक अराजकता रही, कन्नौज पर बदायू के राष्ट्रकूटो की भी आकार रहतान्तर लगभग एक सौ वर्ष गहडवालों ने शासन किया, जिसके अन्तिम राजा जयचन्द के साथ मुहम्मद गोरी के हाथों महड़वालों का भी अन्त हुआ। इस काल को मथुरा में दो जैन मूर्तियाँ मिली हैं- एक 981 ई. की और दूसरी 1977 ई. की। साँभर के चाहमान
अजयमेरु (अजमेर) के निकट शाकम्भरी साँभर) में चाहमान (चौहान) सजपूतों का सस्य 700 ई. के लगभम प्रारम्भ हुआ। धीरे-धीरे नाडोल, धोलपुर (धोलका), आबू, रणथम्भौर, परतापगढ़, चन्द्रवाई (इटावा के निकट यमुना तट पर) आदि कई स्थानों में भी इस वंश की शाखा-उपशाखाओं का राज्ध हुआ। वसुदेव द्वारा संस्थापित सपादलक्ष या साँभर का यंश इनमें सर्वप्रमुख था, जिसमें अनेक राजा हुए। इनमें पृथ्वीराज प्रथम जैनधर्म का परम भक्त था। उसने रणथम्भौर के जिन मन्दिर पर स्वर्णकलश चढ़ाया था। अजमेर में 1188 ई. में किन्हीं पं. गुणचन्द्र ने आचार्य गदानन्दि से शान्तिनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठित करायी थी। पृथ्वीराज द्वितीय भी परम जैन था और विजौलिया पार्श्वनाथ तीर्थ के जैन गुरुओं का भक्त था। उसने एक जिनालय के लिए मोरकुटी (मोराझरी) गाँव का दान दिया था। राजा अाराज को आचार्य जिनदत्तसूरि ने अपने उपदेशामृत से प्रभावित किया था।
सोमेश्वर चौहान- अणोराज का पुत्र, विग्रहराज चतुर्थ एवं पृथ्वीराज द्वितीय का अनुज और उत्तराधिकारी गुजरात के सोलंकीनरेश जयसिंह सिद्धराज का दौहित्र एवं दत्तक पुत्र, कुमार पाल सोलंकी का प्रतिद्वन्दी, दिल्ली के अनंगपाल तोमर का
224 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ