SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वंश और राज्य का अभ्युदय नागभट प्रथम (740-756 ई.) के समय से हुआ। उसने सिन्ध के अरबों को हराकर बड़ी प्रसिद्धि प्राप्त की थी और अनेक छोटे-छोटे राज्यों को अधीन करके पर्याप्त शक्ति बढ़ा ली थी। यह राजा जैनधर्म का पोषक और सम्भवतया अनुयायी भी था। उसका भतीजा एवं उत्तराधिकारी कक्कुक तो परम जैन था और उसने भिन्नमाल में एक विशाल जिनमन्दिर बनवाया था जिसे उसने धनेश्वरमच्छ के यतियों को सौंप दिया था। प्राचार्य 1 उद्योतनसार ने केवल वत्सराज कुक्कुक के अनुज एवं उत्तराधिकारी देवराज का पुत्र वत्सराज (775-800 ई.) कन्नौज के गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था। वह बड़ा प्रतापी, पराक्रमी और विजेता था। उसने इन्द्रायुध से कन्नौज छीनकर उसे अपने नवोदित साम्राज्य की राजधानी मनोनीत किया था । यद्यपि उसके समय में प्रधान राजधानी भिन्नमाल ही बनी रही। समस्त पूर्वी राजस्थान, मालवा, मध्यभारत, गुजरात और उत्तर प्रदेश के पर्याप्त भाग उसके राज्य के अन्तर्गत थे । दक्षिण के राष्ट्रकूट और बंगाल के पाल उसके प्रवे कुवलयमाला (778 ई.) में और जिनसेनसूरि पुन्नाट ने हरिवंश पुराण (783 ई.) में इस 'रणस्ति', 'परभट भृकुटि भंजक' आदि विरुदधारी गुर्जर प्रतिहार नरेश वत्सराज का भारतवर्ष के तत्कालीन सर्वमहान् नरेशों में उल्लेख किया है। 'कुवलय' की रचना जाबालिपुर (जालोर) के ऋषभदेव- जिनालय में हुई थी। वह नगरी स्वयं वत्सराज की ही एक उप-राजधानी थी। राजा बहुधा वहीं रहता था । 'हरिवंश' की रचना वर्धमानपुर (मध्यप्रदेश में पुराने धार राज्य का बदनावर नगर जो उज्जैन से 40 मील पश्चिम में स्थित है) की नन्नराज- बसति में प्रारम्भ की गयी थी और उसके लगभग 12 मील पश्चिम में स्थित दोस्तटिका ( दोतरिया) के शान्तिनाथ जिनालय में उसे पूर्ण किया गया था। इसी काल में आचार्य हरिभद्रसूरि ने चित्तौड़ में निवास करते हुए अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रणवन किया था। बत्तराज जैनधर्म का बड़ा समर्थक एवं पोषक था । जनयति बप्पभट्टि का वह बड़ा सम्मान करता था। उसी के समय में मथुरा में श्वेताम्बर और दिगम्बर मन्दिर सर्वप्रथम पृथक-पृथक बने लगते हैं। वह दोनों ही सम्प्रदायों के साथ समान व्यवहार करता था । श्रीमाल, ओसिया आदि नगरों में उसने ftara जिन-मन्दिर निर्माण कराये थे। कम्नौज में उसने 100 हाथ ऊँचा भव्य जिन मन्दिर बनवाया था, जिसमें भगवान् महावीर की स्वर्णमयी प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी, और ग्वालियर में उसने एक 23 हाथ ऊँची तीर्थंकर प्रतिमा स्थापित की थी। मोधरा, अन्हिलवाड़ आदि स्थानों में भी उसने जिनमन्दिर बनवाये बताये जाते हैं। इसी काल में 781 ई. में श्रीपट्टन के मन्त्रीश्वर जिननाग की भार्या नारायणदेवी एक प्रसिद्ध धर्मात्मा जैन महिला थी । नागभट्ट द्वितीय नागावलोक 'आम' ( 800-833 ई.) -- वत्सराज का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था और उसके समान ही प्रतापी, विजेता और जैनधर्म का पोषक था । 222 : प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy