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________________ विद्वान् को आधुनिक इतिहासकार एक दिगम्बर मुनि मानते हैं। वस्तुतः सुप्रसिद्ध द्वात्रिंशिकाओं के रचयिता आचार्य सिद्धसेन (प्रथम) ही वह गुप्तकालीन क्षपणक थे जो श्रेष्ठकवि, महान् तार्किक और अत्यन्त उदार एवं प्रगतिवादी विद्वान् थे । उज्जयिनी के महाकाल मन्दिर में उनके द्वारा किये गये चमत्कारों को लेकर कई किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। सुप्रसिद्ध अमरकोषकार अमरसिंह भी जैन थे, ऐसा कई विद्वानों का विश्वास है और ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर नियुक्तियों के रचयिता जैनाचार्य भद्रबाहु के बड़े भाई थे, ऐसी मान्यता है। अश्वपति सुभट के पुत्र संघल - गुप्तवंशी नरेश (कुमारगुप्त ) के समय में पद्मावतीपुर निवासी और शत्रुओं का मान भंग करनेवाले 'अश्वपति' उपाधिधारी सुभट के पुत्र शम-दमाग संघल ने जो भद्रान्वय के भूषण एवं आर्यकुल में उत्पन्न आचार्य गोशर्म के शिष्य थे, (मध्यप्रदेश में विदिशा के निकट उदयगिरि पर स्थित गुहामुख में वीतराग जिनवर पाश्र्श्वदेव की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी। इसमें उनका हेतु कर्मरूपी शत्रुओं का क्षय करना और पुण्य उपार्जन करना था। यह संघल विधिपूर्वक यतिमार्ग में स्थित होकर (मुनिदीक्षा लेकर ) शंकर मुनि कहलाये थे । 'अश्वपति' उपाधि राजा-महाराजाओं या बड़े सामन्तों की होती थी, अतएव उपर्युक्त सुमट अश्वपति गुप्तों के कोई बड़े सामन्त और पद्मावतीपुर के शासक रहे प्रतीत होते हैं। यह प्रतिष्ठा कार्तिक कृष्णा पंचमी, गुप्त-संवत् 106, अर्थात् 426 ई. में हुई थी। उपर्युक्त पार्श्व-प्रतिमा उसी स्थान में अखण्डतरूप में अभी भी विद्यमान है, लेख उसके निकट ही दीवार पर अंकित हैं । श्राविका शामाया- कोहियगण की विद्याधरी शाखा के दत्तिलाचार्य की गृहस्थ-शिष्या थी जो भट्टिभव की पुत्री थी और ग्रहमित्रपालित की कुटुम्बिनी (धर्मपत्नी ) थी। उसका पति प्रातारिक (नदी के घाट का अधिकारी ) था । इस धर्मात्मा श्राविका ने सम्राट् कुमारगुप्त के राज्य में, गुप्त सं. 113 अर्थात् 432 ई. में मथुरा में एक जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा करायी थी। श्रावक भद्र-सोमिल का पुत्र, जैन साधुओं के संसर्ग से पवित्र, प्रचुरगुणनिधि महात्मा-पट्टिसोम था । उसका पृथुलमति-यशा पुत्र रुद्रसोम अपरनाम व्याघ्र था। व्याघ्र का पुत्र भद्र या मद्र था जो द्विज, गुरु और यतियों (जिन मुनियों) में प्रीति रखनेवाला, पुण्यस्कन्ध और संसार के आवागमन चक्र से भयभीत, धर्मा था। उसने अपने कल्याण के लिए सम्राट् स्कन्दगुप्त के राज्य में गुप्त सं. 141 (सन् 460 ई.) के ज्येष्ठ मास में, ककुभ (उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले का कहायूँ) नामक ग्रामरत्न में, अर्हन्तों में प्रमुख पंच- जिनेन्द्र (आदिनाथ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्व और महावीर) का गिरिवर के शिखर समान सुचारु शिलास्तम्भ बनवाकर प्रतिष्ठापित किया था। यूँ का यह प्रसिद्ध पंच- जिनेन्द्र स्तम्भ अब भी विद्यमान है। वलभीनरेश मटार्क - पाँचर्थी शती ई. के मध्य लगभग गुजरात के वलभीनगर 218 प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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