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करावे थे। कहा गया है कि अपने इस कार्य से चक्रेश्वर ने इस स्थान (एलोरा) को ऐसा सुतीर्थ बना दिया था, जैसा कि पूर्व काल में भरत चक्रेश्वर ने अपने ऐसे ही कार्यों द्वारा कैलालपर्वत को बना दिया था।
वसुविसेहि और उसके पुत्र नाम्बि, योकि, जिन्धि एवं बाहुबलि नामक सेट्रटियों ने 1200 ई. के लगभग श्रवणबेलगोल की विन्ध्यगिरि पर चौबीसी प्रतिष्ठापित की थीं तथा अन्य निर्माण कराये थे। यह सेष्टि परियार भयकीर्ति
शिलालेखों में दिण्डिकराज, सामन्त नागनायक, यशकीर्ति का सम्मान करनेवाले सिंहलनरेश, चतुर्मुखदेव को 'स्वामी' की उपाधि देनेवाले पाचनरेश, वीरपल्लवराय, गरुड़केसिराज, वत्सराज बालादित्य, गण्डविमुक्त के श्रावक, शिष्य कोडव्य, दण्डनायक, हेगडे, बम्मदेव और नागदेव, सिंग्यपनायक, राजा गुम्मट, पण्डितार्य के शिष्य सामन्त हरिया और सामन्त माणिक्कदेव, हेगडेकरण, युद्धवीर भावन, गन्ध-हस्ति, बोथिम आदि अन्य अनेक जैन राजाओं, सामन्त-सरदारों लक्ष गादुण्डों, सेष्टियों, धर्मात्मा महिलाओं आदि के पूर्व-मध्यकाल में नामोल्लेख मिलते हैं। अनेक धर्मात्माओं द्वारा प्रवणबेलगोल आदि में किये गये दाम या अन्य धर्म-कार्यों के संकेत भी मिलते हैं।
पूर्व मध्यकालीन दक्षिण के उपराज्य एवं सामन्त चंश :: 215