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________________ जिनेन्द्रपदाम्बुज-भक्तियुक्ता, महाप्रसिद्धा थी और विद्यानन्दस्थामो की गहरा-शिष्या थी। उसका सपत्र भिषगराज विद्यासार भी सदाकार, सुमना, बन्धुपोषक, पूज्यहृदय और तस्वशील शा। धर्मात्मा चिक्कतायि ने कनकाचल के भगवान पार्श्वेश की पंचवर्षीय पूजा, मुनियों के नित्य आहारदान और सदैव शास्त्रदान के निमित्त 1181 ई. में किन्नरपुर का दान दिया था। राजकुमारी उदयाम्बिका और वीराम्बिका-चालुक्य त्रैलोक्यमल्ल की ओर से जब दण्डनायक मने-बेगडे-अनन्तपालव्य बनवासि आदि सप्ताद्ध-लक्ष देश का शासक था तो उसका उपसामन्त गोविन्दरस बनवान्दि-1 2000 रनक मासा पुत्र राजभक्त सोम या सोवरत था, जिसकी पत्नी सोमाम्बिका रूप-लावण्य में रति के समान और सम्बग्दर्शन में रेवती रानी के समान थी! इस सोमनप की दो पुत्रियों थींबीराम्बिका और उदयाम्बिका, जो साक्षात् जिन-शासन देथियों के समान धर्मरक्षक और धर्मात्मा थीं। उदयाम्बिका का विवाह जूजिननृप के महापराक्रमी एवं यशस्वी पुत्र जूजकुमार अपरनाम कुमार गजकेसरी के साथ हुआ था। इस राजपत्री एवं राजरानी ने अपनी बहन के साथ सण्ड में, 1100 ई. के लगभग, देवेन्द्र-विमान और नागराज-भवन जैसा सुन्दर और हेमाचल-जैसा उत्तुंग, मणिमाणिक्य-खचित भव्य जिनेन्द्रभवन बनवाया था। बोदण्णगौड़-1154 ई. में पार्श्वसेन भट्टारक ने, जो साधुओं के समस्त गुणों से सम्पन्न थे, होलसकरे की शान्तिनाथ-बसदि का जीर्णोद्धार कराया था और विमान शुद्धि, नाँदीमंगल, ध्वजारोहण, भेरीताइन, अंकुरारोपण, बृहच्छान्तिक, मन्त्रन्यास, अंकन्यास, केवलज्ञान का महाहीम, महास्नपनाभिषेक, अग्रोदकप्रभावना, कलशनमायना आदि रूप से विधिवत् प्रतिष्टोत्सव किया था। तदनन्तर जिनालय के संरक्षण तथा उसमें अक्षयतृतीया, अष्टाहिका, अनन्त चतुर्दशी, महावीर-निर्वाण एवं ऋषभनिर्वाणरूपी जिनरात्रि महोत्सकों आदि समरत धार्मिक पर्यों और महोत्सदों के मनाये जाने की व्यवस्था की थी। उनके इस धर्म-कार्य में मूलसंघ-आम्नायी बोदण्णगौड़ और उसके धर्मात्मा सत्पुत्रों सोपण्णयौड, शान्तण्णगौड और आदरणगौड का पूरा सहयोग था। उस्त व्यय और भूमिदानादि का प्रधान अंश उन्होंने ही दिया था। स्थानीय शासक प्रताप-नायक से भी उन्होंने कुछ भूमि इस हेतु भेंट देकर प्राप्त की थी। श्रावकोत्तम चक्रेश्वर-श्रीयद्धनापुर (श्रीवर्द्धनपुर) निवासी धनवान् एवं धर्मात्मा सेठ राणुगी श्रावक के पुत्र श्रावक म्हालुगि थे, जिनकी धर्मपत्नी का नाम स्वर्णा था। इनके चार पत्रों में सबसे जेठे श्रावक चक्रेश्वर थे, जो महादानी, भर्मेकमूर्ति, स्थिर-शुद्ध-दृष्टि, दयावान, सतीवल्लभ, अपनी उदारता में कल्पवृक्ष के समान और निर्मल धर्मरक्षक थे। प्राचीन धर्मतीर्थ एवं कलातीर्थ एलउर (एलोरा-महाराष्ट्र राज्य के औरंगााद जिले में स्थित में पर्वत के ऊपर इन श्रावक चक्रेश्वर ने 1294 ई. में पार्श्वनाथ आदि तीर्थकर भगवानों के विशाल बिम्ब समारोहपूर्वक प्रतिष्ठित ANSALILABADALIcommHDPmonetedIHAAdesdesk1 000 214 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं mins
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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