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सदैव के लिए स्वगुरु को समर्पित करा दिये थे। श्री सयनगिरि और बालेन्दु-मलधारि के प्रिय शिष्य घालायक और मौहन्नले के अपोल्लापल्ले को इस दान की व्यवस्था का भार सौंपा गया था।
अन्य विशिष्ट जन
भूपाल गोल्लाचार्य ----गोल्लादेश के नूतनचन्दिल-वंशी राजा, जिनका नाम सम्भवतया भूपाल था, किसी कारण को पाकर संसार से विरक्त हो गये और जैन मुनि बने थे तथा मोल्लाचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुए थे। गृहस्थ अवस्था में रहते ही वह परम जिनभक्त थे और 11वीं शती ई. के प्रारम्भ के लगभग उन्होंने सुप्रसिद्ध भूपाल-चतुर्विशति-स्तोत्र की रचना की थी, जिसकी गणना भक्तामर, कल्याणमन्दिर आदि पंचस्तोत्रों में की जाती है। कोषमुकुन्दझन्क्य मूलसंघ-देशीगण-पुस्तकगच्छ के महेन्द्रकीर्ति के शिष्य वीरनन्दि उनके दीक्षा गुरु थे और उनके उपरान्त यही उनके पट्टधर हुए। गोल्लाचार्य के शिष्य त्रैकाल्ययोगी थे, जिनके प्रशिष्य सकलचन्द्र के पट्टधर मेयचन्द्र विद्य ने 1115 ई. में समाधिमरण किया था। तद्विषबक शिलालेखों में उन्होंने 'गोल्लाचार्य इति प्रसिद्धमुनिपोऽभूगोस्लदेशाधिपः', भूपाल-मौलि-धुमणि, विदलिताङ्घ्रि अज-लक्ष्मीविलास, शुद्धरत्नत्रयात्मा, सिद्धात्माधर्थ-सार्थ-प्रकटन-पटु, सिद्धान्त-शास्त्राब्धि-धीचि आदि कहा गया है।
पार्श्वदेव मन्त्रीश नेमदण्देश के पुत्र थे और उनकी पत्नी मुहरसि गंगवंश में उत्पन्न हुई थी 1 कम्बदहल्लि प्राचीन और प्रसिद्ध जैन केन्द्र था। वहीं इन धर्मात्मा पार्थ ने विडिगनविले के प्राचीन जिनमन्दिर का जीर्णोद्धार कराके मन्दिर के लिए, दिव्य व्रत्तियों के लिए और विद्यार्थियों के निर्वाह के लिए भूमिदान करके हनसोमे के जैनाचार्यों को 1167 ई. में समर्पित कर दिया था।
खचरकन्दर्प सेनमार--कोई विद्याधरवंशी राजा था। इसके राज्य में देवगण पाषाणाक्ष्य के अंकदेव भट्टारक के शिष्य महीदेव के गृहस्थ-शिष्य निरवधय्य ने महेन्द्रबोलल प्राप्त करके 1060 ई. के लगभग कडवन्ति में मेलसचट्टान पर निरवध-सिनालय नाम का मन्दिर बनवाया था। राजा सेनमार ने उससे प्रसन्न होकर कृपापूर्वक उसे एक मान्य प्रदान किया था, जिसे अधिकमान्य का नाम देकर उसने उक्त जिनालय की भेंट कर दिया था। उस प्रदेश के किसानों ने भी अपने धान्य की फ़सल का एक अंश उक्त जिनालय के लिए सदैव देते रहने का संकलन किया था।
धर्मात्मा चिक्कतायि-अच्युतराजेन्द्र के सुपुत्र अच्युत-बीरेन्द्र-शिक्यप नाम के रामा सजवैध धरणीय ब्रथकुल में उत्पन्न, जैनधर्माज-भानु, समस्त शास्त्रों का ज्ञाता, बुधजन-सेवी, मुनिजनपद-भक्त, बन्धुसत्कारदक्ष, भिधम्बर था। उसकी कुलवनिता (पत्नी) चिक्कतायि त्रिवर्ग के संसाधन में सावधान, साध्वी, शुभाकारयुता, सुशीला,
पूर्व मध्यकालीन दक्षिण के उपरा
एवं सामन्त चंश :: 213