________________
ATI
को दान दिइसी
कान में बालमसिद्ध पार्श्वनाथबसदि विद्यमान थी, जिसके अध्यक्ष उस समय जिनभूषण भट्टारक थे। बेलारी जिले में तो कई जैन्न केन्द्र थे, जिनमें कोलि प्रमुख था। उसकी सेम-पार्श्व-बसदि को कल्याणी के चालुक्यों एवं होयसलों का भी संरक्षण प्राप्त था। सीमि, कोट्टर आदि अन्य जैनकेन्द्र थे। इस काल में वारंगल में रुद्रदेव प्रथम ककातीय का शासन था। उसका उत्तराधिकारी गणपतिदेव (1199-1210 ई.) इस वंश का प्रसिद्ध और शक्तिशाली नरेश था, किन्तु उसी के समय से उस प्रदेश में जैनधर्म की अवमति भी प्रारम्भ हुई । अन्तिम राजा रुद्रदेव द्वितीय (129]-1321 ई.) था, जिसे पराजित करके मुहम्मद तुग़लुक ने इस हिन्दू राज्य को समाप्त कर दिया। इसी राजा के समय में जैन कवि, अव्यपार्य ने कन्नड़ीकाव्य 'जिनेन्द्र कल्याणाभ्युदय की रचना की थी। देवगिरि के यादव नरेश
इस वंश का संस्थापक सुरान प्रथम था जो पीं शताब्दी में राष्ट्रकट सम्राट अमोघवर्ष प्रथम के अधीन एक छोटा-सा सामन्त था और सुएन देश का जागीरदार था। इसी कारण यह सुएन-वंश भी कहलाता है। इस वंश का भिल्लम द्वितीय कल्याणी के चालुक्यवंश के संस्थापक सैलप द्वितीय का सहायक था। उसकी छठी पीढ़ी में सुएमचन्द्र तृतीय (1142 ई.) जैनधर्म का विशिष्ट पोषक था। उसका बंशज भिल्लम पंथम (1187-91 ई.) देवगिरि के यादवराज्य का वास्तविक संस्थापक था। वह और उसके उत्तराधिकारी होयसलों के प्रबल प्रतिद्वन्दी थे। होयसल सज्य की माँति ही 14वों शती के प्रारम्भ में मुसलमानों में देवगिरि के यादवयंश एवं राज्य का भी अन्त कर दिया था। इस वंश के राजे प्रायः जैन नहीं थे, किन्तु जैनधर्म के प्रति असहिष्णु भी नहीं थे। इनके राज्य में जैनधर्म जीवित रहा। कम-से-कम एक प्रसिद्ध जैन वीर कुचिराज देवगिरि के यादव राज्य की देन है।
सुएन तृतीय या सेउणचन्द्र तृतीय इस वंश का 13वाँ राजा था। उसने ॥42 ई. में अंजनेरी के चन्द्रप्रभ-जिनालय के लिए नगर की तौल दुकानें दान की थीं। उसी अवसर पर नगर के साहु वत्सराज, साहु लाहड और साहु दशरथ नामक तीन धनी व्यापारियों ने भी एक दुकान एवं एक मकान इसके लिए समर्पित कर दिया था। यह दान शासन कालेश्वर पण्डित के पुत्र दिवाकर पण्डित में लिया था।
सामन्त कधिराज-देवगिरि के यादवनरेश कन्नरदेव अपरनाम कृष्ण (1247-50 ई.), उसके अनुज महादेवराय (1260-7t) ई.) और पुत्र रामदेय अपरनाम रामचन्द्रराय (1270-1309 ई.) का जैन सामन्त ऋषिराज या कूचदण्डेश यादब राजाओं की ओर से पाण्ड्यदेशान्तर्गत बेतूरप्रदेश का शासक था। वह अत्यन्त शूरवीर, संन्यसंचालन-निपुण
और कुशल प्रशासक होने के साथ-ही-साथ बड़ा धार्मिक था। उसके पिता का नाम सिंहदेव और माता का मल्लाम्बिका था। अत्यन्त रूपवान, चम्पक-वर्ण-गात्र,
।
210 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ