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के लिए ग्रामदान दिया था। सम्भवतया इसी नरेश के समय 956 ई. में गंगनरेश मारसिंह ने पुलिगेरी की प्राचीन शंखतीर्थ-वमतिमण्डल में गंगकन्दर्प-जिनालय बनावाकर उक्त तीर्थ के परग्यराबार्य देवगण के देवेन्द्र भट्टारक के प्रशिष्य और एकदेव के शिष्य जयदेव पशिलत को भूमिदान दिया था। ये सबं अकलंकदेव के परम्पराशिष्य थे। अरिकेसरी हतीय के पश्चात इस वंश का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता। इस वंश में प्रारम्भ से अन्न तक जैनधर्म की प्रवृत्ति थी। नागरखण्ड के कदम्ब राजे
इनका वर्णन कल्याणी के घालुक्यों और कलचुरियों के अन्तर्गत आ चुका है, जिनके वे सामन्त थे। इस वंश में हरिकेसरीदेच, कीर्तिदेव, रानी माललदेवी, सोक्देिव, दोपदेव आदि प्रसिद्ध जिनभक्त हुए हैं। कोंगाल्व राजे
कौगाम्यवंशी सामन्त राजे क्तमान कर्णाटक राज्य के कुर्ग और शासन जिलों के अथवा कावेरी और हेमवती नामक नदियों के मध्य, स्थित कोंगलनाड 8000 प्रान्त के शासक थे। मूलतः ये प्राधीन रेयूर (विचनापल्ली) के चोल नरेशों की सन्तति में उत्पन्न हुए थे और अपने लिए उरैयूर-पुरवराधीश्वर, सूर्यवंश-शिखामणि, मायालकुलोइयाय नभस्तिमाली से विरुद्र प्रयुक्त करते थे। सन् 900 ई. के लागभग गंग-राजकुमार एयरप्प ने इस वंश के प्रथम ज्ञात व्यक्ति को इस प्रदेश में अपना सामन्त नियुक्त किया था, किन्तु कौगात्वों का वास्तविक अभ्युदय तब से हआ जब 1004 ई. में सम्राट राजराजा चोल ने इस वंश के पंचव-महासय को उसकी सेवाओं से प्रसन्न होकर क्षेत्रिय-शिखामणि कोंगाल्व बिरुद दिया, मालब्धि प्रदेश दिया और अपना प्रमुख सामन्त बनाया था। उसका उत्तराधिकारी बर्दियकोगाल्व था। तदुपरान्त राजेन्द्रचोल-पृथ्वीमहाराज हुआ, जिसकी ज्ञात तिथि 1022 ई, है। उसका पुत्र एवं उत्तराधिकारी राजेन्द्रचोल काँगाल्य था।
राजेन्द्रचोल कोंगाल्व-इत राजा की प्रथम ज्ञात तिथि 1026 ई. है और उसने लगभग 1050 ई. तक राज्य किया प्रतीत होता है। यह राजा परम जैन था
और उसके गुरु नन्दिसंघ-द्रविलगण-अरुंगलान्वय के गुणसेन पशिइसदेव थे। इस राजा ने मुल्लूर में एक जिनालय का निर्माण कराया था। उसकी रानी पाँचब्दरसि भी बड़ी धर्मात्मा थी तथा पुत्र राजेन्द्र कोंगाल्व भी परम जैन था। इसी राजा के समय में 1050 ई. के लगभग, उसके एक सरदार मदुवंगवाद के स्वामी और किरिदि के सामन्त अय्य ने बारह दिन के सम्लेखनाव्रत पूर्वक चंगारच बसदि में समाधिमरण किया था जहाँ उसके पुत्रौ बाकि और बुकि ने उसका स्मारक बनवाया था। प्रायः उसी समय उसी स्थान में बिलियसेट्टेि नामक धनी व्यापारी ने भी गुरुचरणों में
पूर्व मध्यकालीन दक्षिण के उपरान्य एवं सामन्त अंश :: 9415