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________________ महासामन्त निम्बदेव-परादित्य शिलाहार का प्रधान सामन्त और वीर सेनापति निम्बस या निम्बदेव राज्य का प्रमुख स्तम्भ था और शिलाहार नरेश का दाहिना हाथ बन गया था। शिलालेखों में इस बीर की बड़ी प्रशंसा पायी जाती है। उसे विजय-सुन्दरी-बन्तमा सामन्तशिरोमणि, शत्रुसामन्तों के संहार के लिए प्रचण्ड पवन, सुजन-चिन्तामणि, गण्डरादित्यमहायक्ष, दक्षिण-मुजदण्ड इत्यादि कहा गया है। राजा ने उसकी सेवाओं से प्रसन्न होकर उसके नाम से निम्बसिरगौच नामक नगर बसाया था। गण्डरादित्य के उत्तराधिकारी विजयादित्य के समय में भी वह अपने पद पर आसीन रहा। विजल कलचुरि के साथ इस शिलाहार नरेश का जो भीषण युद्ध हुआ उसका संचालन भी निम्बदेव ने ही किया था। उसी युद्ध में इसने वीरगति पायी थी, किन्तु मरते-मरते भी अपने शौर्य एवं युद्ध पराक्रम से यह कलचुरियों को इतना आतकित कर गया कि वे मैदान छोड़कर भाग गये। धीर योद्धा होने के साथ-ही-साथ सामन्त निम्बदेव बड़ा धर्मात्मा था। उसकी जिनभक्ति असीम थी, जिसके कारण सम्यक्त्व-रत्नाकर, जिनचरण-सरसीरुह मधुकर-जैसे बिरुद उसने प्राप्त किये थे। कोल्हापुर के आसपास कोई बसदि या जिनालय ऐसा नहीं था, जिसने उसकी उदार दानशीलता का लाभ न उठाया हो। स्वयं राजधानी कोल्हापुर में सुप्रसिद्ध महालक्ष्मी (पद्मावती) मन्दिर के निकट उसने अत्यन्त सुन्दर एवं कलापूर्ण नैमि-जिनालय बनवाया था। इस मन्दिर के शिखर की कर्णिका पर 77 खड्गासन जिन-प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं। वर्तमान में इस मन्दिर पर वैष्णवों का अधिकार है। और मूल-नायक मेमिमाश्य का स्थान विष्णुमूर्ति ने ले लिया है। तेरिदाल के गोंकि-जिनालय की प्रतिष्ठा के अवसर पर 1123 ई. ऐं सामन्त निम्बदेव भी उपस्थित था और उक्त धर्मकार्य में सहयोगी था। कोल्हापुर की रूपनारायण-वसदि का यह प्रमुख संरक्षक था और उस संस्थान के आचार्य वही कोल्हापुरीय माधन्दि-सिद्धान्तचक्रवर्ती उसके गुरु थे। श्रवणबेलगोल में महानवमी मण्डप के 168 ई. के एक स्तम्भलेख में सामन्त निम्बदेव को 'दान-श्रेयांस' कहा है और उसे सामन्त केदारनाकरस एवं सामन्त कामदेव के साथ-साथ उक्त माधनन्दि का प्रमुख गृहस्थ-शिष्य बताया है। ये दोनों सामन्त भी परम जैन थे और निम्बदेय के साथी रहे प्रतीत होते हैं। कोल्हापुर में प्राप्त 1195 ई. के एक शिलालेख के अनुसार महासामन्त निम्ददेवरस ने कवडे मोरन के सन्तेय-मुद्गोडे में भगवान् पार्श्वनाथ का एक भन्म मन्दिर बनवाया था और उसके लिए सात अन्य धर्मात्मा श्रावकों के साथ कोल्हापुर को रूपनारायण बसदि के तत्कालीन आचार्य श्रुतकीर्ति त्रैविध को, जो माघनदी के शिष्य थे, स्थानीय राजकसें आदि का दान दिया था। निम्श्रदेय मन्त्रशास्त्र का भी ज्ञाता था और शासनदेयी पद्मावती का उसे हार था। वह धर्मशास्त्र का भी ज्ञाता था और श्रावकों की धानकल आचरण करने के लिए सदैव प्रेरित एवं प्रोत्साहित करता रहता था। इस युद्धधीर, कर्मवीर और धर्मवीर महासामन्त निम्त्रदेव ने इतनी ख्याति अर्जित की थी ReadDAIL 202 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ wang
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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