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पत्री पम्पादेवी और पुन श्रीवल्लभ जी विक्रम-सान्तर वितीय) के नाम से प्रसिद्ध हुआ। दूसरी रानी अकादेवी से काम, सिंगन और अम्पण नाम के तीन पुत्र हर थे। यह रानी नन्नि सान्तर की पत्नी की छोटी बहन थी।
महिलारत्न बट्टलदेवी या चट्टले, गंग-राजकुमारी थी। गंगनरेश रक्कसगंग प्रथम का उत्तराधिकारी उसका छोटा भाई नीतिमार्ग था एक दूसरा भाई सजा कासव था, जिसकी पत्नी संपलदेवी से पराक्रमी गोविन्ददेव और अरुभुलिदेव नाम के दो पुत्र हुए। इस अरुमुनिदेव अपरनाम रक्कसगंग द्वितीय की रानी गावब्बरसि मध्यदेशाधिपति हैहयवंशी अय्यण-चन्दरसंग की पुत्री थी। इन दोनों को सुपुत्री यह चहलदेवी थी, जिसका भाई राजविद्याधर था और बहन कंचल अपरनाम बीरलदेधी थी। इस प्रकार चबलदेवी रक्कसगंग प्रथम की पौत्री और रक्कसगंग द्वितीय की पुत्री थी। कांधी के पल्लयमरेश कडुष्टि की वह रानी थी। उसके पति की असमय मृत्यु हो गयी प्रतीत होती है, अतएव उसने अपनी छोटी बहन बीरलदेवी के पुत्रों को ही अपना पोष्यपुत्र बना लिया। बीरदेव-सान्तर की वह महादेवी बीरल अपने तेल (भुजबल), गौग्गिग (मन्नि), ओड्डुग (विक्रम) और बमदेव नामक चार शिशु घुत्रों को छोड़कर असमय कालकवलित हो गयी थी। कुछ समय उपरान्त सजा वीरदेव-सान्तर का भी निधन हो गया। अतएव उन मातृ-पितृ-विहीन चारों सान्तर राजकुमारों की माता एवं अभिभाविका का स्थान उनकी इस स्नेहवत्सला मौसी चट्टलदेवी ने लिया । उसी ने मातृवत् उनका पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा एवं कुशल पथ-प्रदर्शन किया। वे चारों राजकुमार भी उसे अपनी सगी जननी ही मानते-समझते थे, उसे पूरा पुत्र-स्नेह, आदर और सम्मान देते थे तथा उसके आज्ञानुवर्ती रहने में स्वयं को धन्य मानते थे। ट्रमिलसंघ-नन्दिगण की लियंगद्धि के निम्बर-तीर्थ से सम्बद्ध अरुंगलान्थय के आचार्य जोडेवदेव अपरनाम श्री-विजय पण्डित-पारिजात' की यह गृहस्थ-शिष्या थी । सान्तरों की राजधानी पोम्धुरीपुर (हुमच्च) में, जिसे अब असने अपना स्थायी निवासस्थान बना लिया था, चट्टलदेवी ने अनेक जिनमन्दिर निर्माण कराये। इनमें प्रधान एवं सर्वप्रसिद्ध पंच बसदि जिनालय था जो अपनी सुन्दरता के कारण उवितिलक-जिनालय (पृथ्वी का आभूषण) कहलाता था। वह विचार कर कि धर्म ही मनुष्य का सर्वप्रधान एवं चिन्तनीय कर्तव्य है, उसने निश्चय किया कि अपने पिता अरुमलिदेव, माता गामध्यरति, बहन बीरलदेवी और भाई
राजादित्य की पुण्य स्मृति (परोक्ष-विनय) में एक अद्वितीय पंचकूट-जिनमन्दिर निर्माण किया जाए। इस देवालय के निर्माण सम्बन्धी 1077 ई, के शिलालेख में लिखा है कि 'गोग्गि (नन्नि-सान्तर) को माता ने बहुत उत्सुकता से विश्व में अग्रगण्य स्थान प्राप्त करनेवाले पंचकूर-जिममन्दिर को वनवाया। क्षितिज और आकाश से बात करनेवाले उक्त मन्दिर और एक मधीन सरोवर का निर्माण करके सान्तरों की माँ चट्टलदेवी ने बहुत यश प्राप्त किया। अपने चार सान्तर-पुत्रों के साथ उक्त जिनालय
पूर्व मध्यकालीन दक्षिण के उपसज्य एवं सामन्त वंश :: 193