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कार्य राजा की प्रसन्नतापूर्वक किये थे। राजा की पट्टमहादेवी गंग- राजकुमारी कंवलदेवी अपरनाम वीर - महादेवी थी, जिससे उसके चार पुत्र तैल, गोग्गिंग, ओडुग और बम्म उत्पन्न हुए थे। इसकी दो अन्य रानियाँ विज्जलदेवी और अचलदेवी थीं । विज्जलदेवी मोलम्ब- नरेश नारसिंगदेव की पुत्री थी।
रानी चागलदेवी - त्रैलोक्यमल्ल - चीर- सान्तरदेव की मनोनयन वल्लभा प्रिय रानी चागलदेवी रूप, गुण और शीलसम्पन्न धर्मात्मा महिलारल थी। वह सान्तर नरेश की वाक्श्री, कीर्ति-वधू और विजय श्री थी, विनययुक्त और पतिपरायणा थी, रूप में रति और पतिभक्ति में पार्वती से उसकी उपमा दी जाती थी। उसने 1062 ई. में अपने पति के कुलदेवतारूप नोक्कय्य (लोक्किय ) - बसदि के सम्मुख एक अति सुन्दर मकुर-तोरणा बनवाया या मेंसो का जिनालय बनवाया था, अनेक ब्राह्मणों को कन्यादान देकर अर्थात् अनेक ब्राह्मण कन्याओं का अपनी ओर से विवाह करके महादान पूर्ण किया था और प्रशंसकों तथा आश्रितों के समूह को यथेष्ट दान देकर स्वयं को दानी प्रसिद्ध किया था। चागलदेवी की जननी अरसिकब्दे ने भी अपनी धार्मिकता के लिए बहुत प्रसिद्धि प्राप्त की थी। इस काल में सान्तर - राज्य का सर्वप्रधान ब्रह्माधिराज कालिदास था और लोक्किय- बसदि के लिए देकर नामक श्रावक ने गुरु माधवसेन को एक ग्राम दान में दिया था।
पट्टणसामि नोक्कय - वीर - सान्तरदेव का आश्रित उसका राज्यसेठ एवं नगर सेठ, राजधानी की शोभा, सान्तर-राज्य का अभ्युदय करनेवाला, आहार- अमयभैषज्य-शास्त्र- दान तत्पर, विशद-यशानिधान, श्री जैनधर्म का अतिशय प्रभावक, जिनागमोक्त आवरणवाला, जिनागम-निधि, जिनेन्द्र के चरणकमलों में लीन, 'सम्यक्त्ववारासि' विरुद्रधारी धनकुबेर एवं धर्मात्मा श्रेष्ठ पट्टणसामि-नोक्कय्य था । उसने 1062 ई. में राजधानी हुमन्त्र में पट्टणसामि-जिनालय अपरनाम नोक्कस्य (या लोक्किय) बसदि का निर्माण कराया, जो अत्यन्त भव्य, मनोहर और विशाल था । इस जिनालय के लिए उसने एक गाँव राजा से लेकर तथा एक अन्य गाँव स्वगुरु दिवाकरनन्दि-सिद्धान्ति के शिष्य और अपने सहधर्मा सकलचन्द्र पण्डितदेव को समर्पित कर दिये। उसने मन्दिर में प्रतिष्ठित प्रतिमा को रत्नों से मढ़ दिया और स्वर्ण, रजत, मूँगा एवं विविध रत्नों की तथा पंच धातु की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठापित की थीं। उसके इष्टदेव जिनेन्द्र थे, गुरु तत्त्वार्थसूत्र' की कन्नड़ी बालावबोधवृत्ति के कर्ता और चन्द्रकीर्ति भट्टारक के अग्रशिष्य सिद्धान्त- रत्नाकर दिवाकरनन्दि थे, स्वामी और शासक वीरदेव - सान्तर थे और पिता अम्मण श्रेष्ठि थे। पट्टणसामि नीक्कय्य-सेष्टि के नाम से सामिरे नाम का गाँव बसा था, जिसमें तथा अन्य तीन ग्रामों में उसने चार सरोवर बनवाये थे और एक लौ स्वर्ण गद्याण देकर उमुरेनदी का सोलंग के पागल सरोवर में प्रवेश कराया था। इस लेख को सकलचन्द्र मुनि के गृहस्थ-शिष्य मल्लिनाथ ने लिखा था। नोक्कय्य-सेट्टि का सुपुत्र वैश्य वंश-तिलक, रूपवान् विनयी,
पूर्व मध्यकालीन दक्षिण के उपराज्य एवं सामन्त वंश 191
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