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________________ की एक बसादे (जिनालय) निर्माण कराकर उसकी प्रतिष्ठा माधवचन्द्र कि के शिष्य नागचन्द्रदेव के पुत्र मादेय सेनबोन से करायी थी और उसके लिए राजा की सहमतिपूर्वक बहुत-सा दान दिया था। अगले वर्ष स्वयं राजा ने हुमच्च में गुद-बसदि बनवायी और उसमें भगवान बाहुबलि की प्रतिभा प्रतिष्ठापित की थी। इस राजा ने एक महादान दिया था, जिसके कारण वह दानवनोद और कन्दुकाचार्य कहलाया । इस राजा का समय लगभग 850-900 ई. है। उसकी रानी का नाम लक्ष्मीदेवी था जिससे उसका पुत्र चागि- सान्तर हुआ जिसने बागि समुद्र नामक सरोवर का निर्माण कराया था। चागि- सान्तर की पत्नी एज्जलदेवी से वीर- सान्तर हुआ, जिसकी पत्नी जाकलदेवी (शान्तिवर्मन की पुत्री) से कन्नर - सान्तर और कावदेव नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए। वीर के पश्चात् कन्नर राजा हुआ और कन्नर के उपरान्त उसके भाई कावदेव की पत्नी चन्दलदेवी ( वीरबलनाथ की पुत्री) से उत्पन्न कावदेव का पुत्र त्यागि सान्तर राजा हुआ । त्यागि सान्तर की रानी नागलदेवी कदम्बवंशी हरिवर्मा की पुत्री थी। उसका पुत्र मन्नि सान्तर हुआ, जिसकी पत्नी अरिकेसरी की पुत्री सिरियादेवी थीं। और पुत्र अकों स चिक्क वीरसान्तर राममान्तर था।उसक हुआ। चिक्कबीर की पत्नी विज्जलदेवी से अम्मणदेव - सान्तर हुआ । अम्मणदेव की रानी का नाम होलदेवी था । उनका पुत्र तैलपदेव था और पुत्री बौरबरसि थी जो किया की रानी हुई। इस प्रकार लगभग 900 से 1050 ई. पर्यन्त, कोई डेढ़ सौ वर्ष के बीच, तौलपुरुष विक्रम - सान्तर के ये विभिन्न वंशज क्रमशः उसके राज्य के अधिकारी होते रहे। वे सब जैनधर्म के अनुयायी थे, किन्तु उनके कार्यकलाप के विषय में विशेष ज्ञातव्य उपलब्ध नहीं है। उपर्युक्त तैलसान्तर (प्रथम) की दो रानियों थीं, एक तो बाँकेयाल्व की छोटी बहन (बीरबरस की ननद ) मांकब्बरसि थी और दूसरी गंगवंश-तिलक पायलदेव की सुता केलेयब्बरसि थी। इस राजा के तीन पुत्र थे--बीरदेव, सिंगन और बम्र्मदेव | बीरदेव सान्तर - तेल- सान्तर प्रथम और महादेवी केलेयब्बरसि का ज्येष्ठ पुत्र एवं उत्तराधिकारी था । चालुक्य सम्राट् त्रैलोक्य मल्ल का वह महासामन्त था और अपने पैतृक राज्य सान्तलिगे-हजार का अधिपति तथा राजधानी पोम्बुर्च्चपुर का स्वामी था । वह जिनपादाराधक, शौर्यपरायण, कीर्तिनारायण, नीति-शास्त्रज्ञ, सर्वज्ञ, त्रैलोक्यमल्ल आदि बिरुद धारी था। अपनी प्रसिद्ध राजधानी (हुमच्च) में इस वीर भूपाल ने अनेक जिनमन्दिर बनवाये थे, जिनमें नोकेाय्य या लोक्किय-बसदि सर्वोपरि थी। इस जिनालय को वस्तुतः उसके सहयोग एवं सहमति से उसके पणासानि नोक्यव्यट्टि ने बनवाया था, जिसके लिए उसने तथा राजा ने 1062 ई. में प्रभूत ज्ञान दिया था। वीरदेव खान्तर की धर्मात्मा रानी चागलदेवी ने उसी वर्ष उक्त जिनालय के सामने मकरतोरण बनवाया था, दान दिये थे और अन्य धार्मिक 190 प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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