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________________ " र दानावनोद, उत्तुंगयश. परमार्थबीर, रूपवान्, भारती का कटहार, सत्यभापी, सुभटोत्तम, पराममी इत्यादि गुणसम्पन्न था और नाना देशों के विद्वानों पाई कवियों के लिए अंगराज कर्ण के जैसा दानी या । वह होयसल नरेश वीर बल्लाल का महामण्डलेश्वर था। उसकी माता का नाम लकमादेवी था और उसकी बहन सुप्रसिद्ध चट्टियब्बरसि या चट्टलदेवी थी। राजा एक्कलरस के मन्त्री माल चमूनाथ का वंशज ... होयसलों का वीर सेनापति.महादेव-दण्डनाथ था। उसने जब 1397 ई. में एरंग-जिनालय बनवाकर उसमें शान्तिनाचेदेव की प्रतिष्ठा की और उसके लिए स्वगुरु सकलचन्द्र को भूमि आदि दान दिये उस अवसर पर एस्कलरस भी सपरिवार उपस्थित थे और उक्त धर्मकार्यों में उनका योग था। सुग्गिायब्बरसि-गंगनृप मारसिंग की बहन और एक्कलरस की बुआ धी। उसने पंच-बसदि का निर्माण कराया था, उसके लिए दान दिये थे और मुनियों के आहारदान की व्यवस्था की थी। वह माधनन्दिव्रत्ती की गहस्थ-शिष्या थी तथा पंचपरमेष्ठी की परमभक्त, मुनिजनसेथी, चारुचरित्र, गुणपवित्र और दानशीला रमणी थी। कमकियब्बरसि-सुग्गियब्बरसि की बहन थी। इस राजकुमारी ने अपनी बहन के धर्म कार्यों में सहयोग दिया, उसके दिये दान आदि में वृद्धि की, जहाँ जिनमन्दिर नहीं थे, वहाँ उन्हें बनवाया और जहाँ जिस जिनालय या गुरु को आवश्यकता थी, उसकी पूर्ति के हेतु दान दिये। चट्टियबरसि-उद्धरे के शासक गंगराज मारसिंग की पुत्री, एक्कलरस की छोटी बहन, दशवर्म की पत्नी, एरंग, केशव और सिंगदेव की जननी थी। यह प्रसिद्ध धर्मात्मा महिला बड़ी छानशीला थी। कामधेनु और चिन्तामणि से उसकी उपमा दी जाती थी। शान्तियक्के-इस धर्मात्मा महिला के पिता का नाम कोटि-सेष्टि था, माता का बोपव्ये, चाचा का बोप्प-दण्डेश और पति का केति-सेहि था। यह परिवार गंग भूपाल एक्कलरस के आश्रय में उद्धरे नगर में निवास करता था। उसके पति केलिसेट्टि को सम्यक्त्व-रत्नाकर कहा गया है। वह स्वयं परम जिनभक्त, गुरुचरणों की सेविका, भव-शिखामणि, दान-सत्व और सुमति-निवास थी। उसके गुरु भानुकोर्ति सिद्धान्ति थे। उसने और उसके पति ने उहरे की वह प्रसिद्ध बसदि बनवायी थी मो कनक-जिनालय के नाम से प्रसिद्ध हुई। स्वयं राजा एक्कलरस ने इस जिनालय के लिए उक्त गुरु को भूमिदान दिया था। हुमच्च के सान्तर राजे पोम्बुर्चपुर (हुमच) के सान्तर उनवंशी क्षत्रिय थे और सान्तलिगे--- 1000 प्रदेश के शासक थे आठवीं शताब्दी में इस वंश का उदय हुआ और इसके राजे 184 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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