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नन्निय गंग-बदेव और गंग-महादेवी का पा था। अपने कुल्ल को . परम्परानुसार वह एक धार्मिक राजा था। वह चालुक्य सम्राट् त्रिभुवनमल्ल का माण्डलिक सामन्त था। जिस समय यह धर्म-महाराजाधिराज नन्नियगंग-पेम्पाडिदेव सुख-शान्ति से राज्य कर रहा था, तो 117 ई. में कलंबूरु नगर के अधिपति पट्टणसामि वमिसेट्टि ने अपने नगर में एक भव्य जिनालय बनवाया और उसमें देव की पूजा-अर्चा तथा मुनि आहारदान आदि के लिए राजा मम्नियगंग से भूमि प्राप्त करके स्वगुरु मेघपाषाणगन कीर्टि भारत को सीन की पमहादेवी का नाम कंचलमहादेवी था। वह भी अपने पिता की भाँति प्रभाचन्द्र सिद्धान्तिदेव की गृहस्थ-शिष्या थी। उसने 1121 ई. में माइलि की पट्टदि-तीर्थ-बसदि में पचीस नवीन चैत्यालय बनवाये और उक्त बसदि के लिए स्वगुरु के शिष्य बुधचन्द्र-पण्डितदेय को भूमिदान दिया था। कल्लूरमुष्ड के इस ।।21 ई. के शिलालेख से पता चलता है इन गंग-राजाओं का शासन अपनी पैतृक जागीर मण्डलि-हजार प्रान्त पर था और उसके एडदोरे-सत्तर विषय में स्थित पूर्वोक्त पट्टदि-पसदि मंगवंश का अति प्राचीनकाल से राज्यदेवालय रहता आया था। मूलतः गंगवंश-संस्थापक दडिंग और माधव ने ही उस जिनालय की स्थापना की थी। अनेक उत्थान-पतनों के बीच से गुजरते हुए भी अपने कुल के इस इष्ट देवावतन का समी गंगराजाओं ने संरक्षण किया था। इस उत्तरकाल में भी बर्दिय में उस काष्ट-निर्मित बसदि को पाषाण में 1054 ई. के लगभग बनवाया था और दान दिया था। तदनन्तर उसके पुत्र मारसिंग ने, जो माधनन्दि सिद्धान्ति का गृहस्थ-शिष्य था, 1065 ई. में उसके लिए स्वयं भूमिदान दिया तथा 1070 ई. में अपने भाई सत्य अपरनाम नन्नियनंग के साथ मिलकर दान दिया। तीसरे माई भुजवलग ने जो मुनिचन्द्र सिद्धान्ति का गृहस्थ-शिष्य था, 105 ई. में उसके लिए भूमिदान किया था। इस नन्निययंग आपरनाम सत्यगंग ने 1112 ई. में कुरुलीतीर्थ में गंग-जिनालय बनवाकर उसके लिए गुरु माधवचन्द्र को पादप्रक्षालनपूर्वक भूमि का दान दिया था। इस राजा का पुत्र गंगकुमार वीर, दानी और धर्मात्मा था। यंम राजे इस समय चालुक्य सम्राट् के महामण्डलेश्वर होयसल-नरेशों के मालिक सामन्त थे।
सिंगण दण्डनायक के पिता बोपण दण्डनायक थे, माता मागियरक थी और गुरु हरिनन्दिदेव थे। उद्धरे के महामण्डलेश्वर एकक्कलरस के इस समर-सुभटाग्रणी, जैनचूड़ामणि दीर दण्डाधिपति सिंगण ने जिनपदों का ध्यान करते हुए समति प्राप्त की थी, सम्भवतया 1189 ई. में।
गंगराज एक्कलरस-गंगवंश की एक शाखा का शासन वनवासि देश के जिड्डूलिगे प्रदेश पर था और उद्धरे उसका मुख्य नगर था। इस शाखा में चट्टिम नाम का एक विख्यात वीर पुरुष हुआ। उसका पुत्र 'कीर्तिराज', 'रणमुखरसिक आदि विरुदधारी मारसिंग नृप था, जिसका पुत्र एक्कलभूप था जो गंग-कुल-कमल-दिनकर,
पूर्व मध्यकालीन दक्षिण के उपराज्य एवं सामन्त वंश :: 187