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में दर्शनार्थ गया तो वहाँ उसने देव-पूजन किया, मन्दिर के पूर्ववर्ती शासनों (फानों को
स्वीकारली आपदान दिया। अपने बहनोई पनिदेव द्वारा प्रदत भूमि पर एक भवन बनवाकर भी उसने मन्दिर को दे दिया। अपने उपनयन-संस्कार के अवसर पर 1255 ई. में भी इस पन्द्रह वर्ष आयुाले किशोर राजा ने भगवान् विजय-पादिव की पूजा के लिए दान दिया था। उसके गुरु मूलसंध-बलात्कारगण के मुदेन्दुयोगि के शिष्य और 'सार-चतुष्टय' के रचयिता माघनन्दि सिद्धान्ति थे। राजा ने 1265 ई. में राजधानी के कलि-होयसल-जिनालय में दर्शनार्थ पधारकर अपने महाप्रधान सोमेख दण्डमाधक के सड़योग से त्रिकूट रत्नत्रय-शान्तिनाथ-जिनालय के संरक्षण के लिए स्वगुरु को पन्द्रह ग्राम दान किये थे। तभी से बह मन्दिर नरसिंह जिनालय के नाम से प्रसिद्ध हुआ। राजधानी के नागरिकों ने 1257 ई. में द्रव्य एकत्रित करके भगवान शान्तिनाथ की एक नवीन प्रतिमा प्रतिष्ठित करायी थी, जिसके लिए राजा ने दान दिया। उपर्युक्त सोमय्य दण्डनायक ने 1271 ई. में राजधानी के निकट एक प्राचीन बसदि का पुनरुद्धार किया था। राजधानी के नगर-जिनालय के 1282 ई. के शिलालेख में स्पष्टतया लिखा है कि आचार्यश्रेष्ठ महामण्डलाचार्य माधनन्दि-सिद्धान्ति इस होयसल नरेश के राजगुरु थे, जिन्हें उस वर्ष भी उसने दान दिया था। राजा के माधव नामक एक अन्य दण्डनायक ने 128% ई. में कोध्यणतीर्थ की चतुर्विंशति-तीर्थंकर-बसदि में एक नवीन जिन-प्रतिमा प्रतिष्ठापित करके उन्हीं गुरु माघनन्दि को दान दिया था। उसी वर्ष श्रवणबेलगोल के समस्त जौहरियों (माणिक्य नगरंगल) ने उक्त स्थान के नगर-जिनालय के आदिदेव की पूजन के हेतु अपने गुरु उक्त माघनन्दि की भूमिदान दिया था और 1288 ई. में उन्होंने द्रव्य एकत्र करके उसका जीर्णोद्धार कराया था तथा अपनी जाय का एक प्रतिशत दान किया था। इसी राजा के प्रश्रय में मल्लिकार्जुन के पुत्र जैन विद्वान् केशिराज {1260 ई.) ने 'शब्दमणिदर्पण' नामक प्रामाणिक कन्नड व्याकरण लिखा था और कुमुदेन्दु ने 1275 ई. में कन्नड़ी भाषा में जैन-रामायण रची थी।
रामनाथ होयसल-सोमेश्वर की दूसरी ग़नी देवलदेवी से उत्पन्न उसका पुत्र रामनाथ तमिल प्रदेश एवं कोलर प्रान्त का शासक हुआ। कन्ननूर (विक्रमपुर) को उसने अपनी राजधानी बनाया और 1254 से 1297 ई. तक राज्य किया। उसने 1276 ई. में कोगलि नामक स्थान में चेन्न-पार्श्व-रामनाथ-बसदि का निर्माण कराया था, जिसके लिए उसके राज्य-सेठ नालप्रभु देविसेटि मे भूमिदान दिया था। दो तिथिरहित शिलालेण्टों में स्वयं राजा द्वारा उक्त जिनालय के लिए स्वर्ण-दान दिये जाने का उल्लेख है। कोगलि के जैनगुरू उभवाचार्य का भी इस राजा ने सम्मान किया था और कोल्हापर के सामन्त-जिनालय को भी दान दिया गया था।
होयसल बल्लाल तृतीय (1291-1353 ई.)-नरसिंह तृतीय का पुत्र एवं
182 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं