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की साध्वी पत्नी इस सोमलदेवी ने एक बसदि का निर्माण कराके उसके लिए दानादि दिया था। इस धर्मात्मा पतिपरायणा महिला की उपभा सीता और पार्वती से दी गयी
है ।
सोविसेहि परंगक नाम का एक सम्झान्त मज्जून थ या जिसने एक जिनालय, एक देवमन्दिर, एक तालाब, एक अण्डागार तथा मुदुबोलल में सुरासुर युद्ध के चित्र बनवाये थे। उसका पुत्र अम्मिसेट्टि था, जिसकी भार्या का नाम माचियक्क था। इन दोनों का पुत्र गन्धिसेट्टि हुआ जिसकी पत्नी का नाम माकये था। इस दम्पती का पुत्र प्रस्तुत सोम या सोविसेट्टि था। उसकी सुशीला, गुणवान्, पुण्यवती सती भार्या का नाम मरुदेवी था और उसके गंजग, नारसिंग, सिंगण और सूचण नाम के चार पुत्र थे 1 इस प्रताप - होय्सल-पट्टणामि सोविसेट्टि ने समुद्र-जैसे विशाल तीन सरोवर तथा पर्वत-जैसा उत्तुंग पार्श्व-जिनालय अपना ही नाम धारण करनेवाले नगर ( सोमपुर) में भक्तिपूर्वक बनवाये थे। वह देशीगण - पुस्तकगच्छ के आचार्य नयकीर्ति के शिष्य तथा दामनन्दि-वैविद्य के अनुज, चन्द्रप्रभु पादपूजक बालचन्द्र मुनीन्द्र का गृहस्थ-शिष्य था । उस समय वीर बल्लालदेव के अधीनस्थ दक्षिण प्रदेश का राजा प्रभुगावण्ड नरसिंह नायक था | इस सामन्त का आश्रित उसका राज्यसेठ एवं नगरसेठ यह पट्टण स्वामि सोविसेट्टि था। अपने स्वामी इस सामन्त नरसिंह-नायक की प्रसन्नता एवं अनुमति से सोविसेट्टि ने स्वनिर्मापित जिनालय में श्री पाश्व-जिनेन्द्र की अष्टविधि-अर्चा, जिनालय का खण्ड-स्फुटित जीर्णोद्धार और मुनि आहार- दान की व्यवस्था के लिए 1178 ई. में स्वगुरू बालचन्द्र को पाद प्रक्षालनपूर्वक भूमिदान दिया था। उसी अवसर पर माधव दण्डनायक की आज्ञा से मारन बेड़े ने मन्दिर के दीप के लिए एक तेल मिल तथा घाट पर उतरनेवाले माल की चुंगी का दशमांश समर्पित किया था। अभिलेख में सोविसेट्टि को जितात्म, चारित्राराम, परनारीपुत्र, शरणागत-यज- पंजर, गुणधाम, अपरिमित दानी, नव-तत्त्वविद्, अभिमान मेरु, सज्जन-मित्र, निजकुल- कुवलय-चन्द्र, यशस्वी, दानविनोद, जिनपद-कमल-मधुकर, जिनमार्ग अलंकार इत्यादि कहा गया है ।
देविसेट्टि कडूर जिले के कलसापुर स्थान के आंजनेय - जिनालय में प्राप्त 1176 ई. के शिलालेख के अनुसार स्वगुरु देशीगच्छीय बालचन्द्र मुनि की प्रेरणा से धनकुबेर देविसेड़ि ने राजधानी द्वारसमुद्र में वीरबल्लाल- जिनालय नाम का भव्य जिनमन्दिर बनवाया था और उसकी प्रार्थना पर महाराज वीरबल्लाल ने उक्त मन्दिर की पूजा, संरक्षण, पुजारियों आदि के लिए कई ग्राम तथा कतिपय राज्यकर उसके गुरु बालचन्द्र को दान दिये थे। सम्भवतया इसी श्रीमन्महा-बड्ड व्यवहारी ( बड़े व्यापारियों के प्रमुख) देविसेट्टि और एक अन्य बड़े व्यापारी कवडमय्य ने राजधानी की शान्तिनाथ बसदि के लिए तथा एक अन्य मल्लिनाथ जिनालय के लिए दान दिये ये और अन्य लोगों से भी दिलवाये थे ।
180 प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ