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मूलनायक भगवान् शान्तिनाथ का नित्य आविध पूजन, मुनियों के आहारदान आदि के निमित्त स्वगुरु को भूमि आदि दान दिये थे। वह इतना उदारचेता था कि ब्राह्मणों के लिए भी उसने एक अग्रहार स्थापित किया था और अमृतेश्वर-शिव का मन्दिर भी बनवाया था।
मन्त्रीश्वर चन्द्रमौलि-भरतागम, तर्क, व्याकरण, उपनिषद्, पुराण, नाटक, काध्य आदि में निष्णात एवं विद्यमान्य शैवधर्मानुयायी, विद्वान् ब्राह्मण चन्द्रमौलि होयसल बल्लालदेव का मन्त्रिललाम और उसके दाहिने हाथ का दण्डस्वरूप था। यद्यपि वह स्वयं कट्टर शैव था, तथापि अपनी धर्मात्मा जैन पत्नी आचलदेवी के धार्मिक कार्यों में पूरा सहयोग देता था। उसके द्वारा निर्मापित जिनालय के लिए राजा से स्वयं प्रार्थना करके उसने ग्राम आदि दान कराये थे। यह उसकी तथा उक्त राज्य एवं काल की धार्मिक उदारता का परिचायक है। चन्द्रमौलि के पिता का नाम शम्भुदेव और माता का अक्कबे था।
धर्मात्मा आचलदेवी-मन्त्रीश्वर चन्द्रमौलि की पली आचियक्क, आचाम्या या आघलदेवी परम जिमभक्त थी। उसके पितामह शिवेयनायक मासवाडिमाइ के प्रमुख थे और सश्रावक थे। उनकी धर्मात्मा पत्नी चन्दब्बे थी और पुत्र सोवणनायक था। सोवण की पत्नी पाचच्चे थी, पुत्र को और पुन बलदेवी थी। देशीगण के नमकीर्ति-सिद्धान्तिदेव हे शिष्य बालचन्द्र मुनि की यह गृहस्थ-शिष्या थी। उस रूप गुण-शील-सम्पन्न महिलारत्न ने 1182 ई. में श्रवणबेलगोल में बहुत भक्तिपूर्वक एक अलि भय एवं विशाल पार्श्व-जिनालय निर्माण कराया था और स्वगुरु से उसकी ससमारोह प्रतिष्ठा करायी थी। आचियक्कन का संक्षिप्त रूप 'अक्कन' होने से वह मन्दिर अक्कनबसदि के नाम से भी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि मन्दिरों के उस्त नगर में यही एक जिनमन्दिर होयसल-कला का अपशिष्ट तथा उत्कृष्ट नमूना है। गर्भगृह, सुकनासा, नवरंग, मुखमण्डप आदि से युक्त इस सुन्दर जिनालय में भगवान पार्श्वनाथ की सप्तफणी पाँच फुट उत्तुंग मनोज्ञ प्रतिमा प्रतिष्ठित है। सुकनासा के आमने-सामने धरणेन्द्र और पद्यावती की साढ़े तीन फुट ऊँची मूर्तियाँ हैं। बार के आजू-बाजू सुन्दर जालियाँ, नवरंग में कृष्ण पाषाण के चार चमकदार स्तम्भ, छत में कलापूर्ण मधछन्न, गुम्बद पर विविध प्रस्तरांकन और शिखर पर सिंहललाट है। इस मन्दिर के निर्वाह के लिए स्वयं उसके पति मन्त्रीश्वर चन्द्रमौलि ने महाराज से प्रार्थना करके धोयनहल्लि ग्राम प्राप्त किया और उसके गुरु बालचन्द्र को दान दिलाया था । गोमटेश्वर की पूजा के लिए भी अक्क नामक ग्राम को सजा से प्राप्त करके आचलदेवी से दान कराया था। इस महिला ने अन्य जिनमन्दिर भी निमाण कराये और धार्मिक कृत्य किये प्रतीत होते हैं।
महासति हर्यले ---एक धीर सामन्त की पत्नी थी और उसका सुपुत्र बूबयनायक भी वीर सामन्त था। उसका निवास स्थान करडालु था जहाँ उसने
178 :: प्रमुख ऐतिहासिक जन पुरुप और महिलाएँ,