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________________ कटोर, अतीव सुन्दरी, कोमलांगी लधापि धार वाला का कौमार्यकाल में आततायियों द्वारा अपहरण हुआ ३ अनेक मर्मान्तक कष्टों के बीच से गुजरते हुए अन्ततः अनाम, अजाति, अज्ञात-कुला क्रीतदासी के रूप में भरे बाजार उसका विक्रय हुआ। क्रय करनेवाले कौशाम्बी के धनदत्त के सेठ के स्नेह और कृपा का भाजन बनी तो सेठ-पत्नी मूला के विषम डाह और अमानुषिक अत्याचारों की शिकार हुई। अन्त में जब वह मुंडे सिर, जीर्ण-शीर्ण अल्प वस्त्रों में, लौह श्रृंखलाओं से बँधीं, कई दिन की भूखी-प्यासी, एक सूप में अध-उबले उड़द के कुल बाँकले लिये. रोती-बिलाती. जीवन के कटु सत्यों की जुगाली करती हवेली के द्वार पर खड़ी थी कि भगवान महावीर के अति दुर्लभ दर्शन प्राप्त हो गये। दुस्साध्य अभिग्रह (आखड़ी) लेकर वह महातपस्वी साधु पूरे छह मास से निराहार विचर रहा था। अपने अभिग्रह की पूर्ति उस बाला को उपर्युक्त वस्तुस्थिति में होती दीख पड़ी, और महामुनि उसके सम्मुख आ खड़े हुए। चन्दना की दशा निर्वचनीय थी, महादरिद्री अनायास चिन्तामणि-रल पा गया, 'मक्त को भगवान मिल गये, वह धन्य हो गयी। इष-विषाद मिश्रित अद्भुत मुद्रा से उसने वह अत्ति तुच्छ भोज्य प्रभु को समर्पित कर दिया, उनके सुदीर्घ अनशन व्रत का पारणा हुआ, पंचाश्वर्य की प्राष्ट्रिः हुई. उदाकाउदा जनसग इस अद्वितीय दृश्य को देख विरभयाभिभूत था। और चन्दना-रसका तो उद्वार हो गया। साथ ही समाज की कोढ़ उस घृणित दास-दासी प्रथा को भी उच्छेद हो गया। मुणों के सम्मुख जाति, कुल आभिजात्य आदि की महत्ता भी समाप्त हो गयी ! चन्दना तो पहले से ही भगवान की भक्तं थी अब उनकी शिष्या और अनुमामिनी भी बन गयी। यथासमय वही महावीर के संघ की प्रथम साध्वी और उनके आर्थिका संघ की जिसमें 35,000 आर्थिकाएँ थीं, प्रधान बनी। चण्डप्रयोत और शिवादेवी पुणिक का पुत्र अवन्ति-नरेश अधोत अपनी प्रचण्डता के कारण चण्डप्रयोत कहलाता था, वैसे उसका मूलनाम मासेन प्रधोत था। वह अत्यन्त मानी, युद्धप्रिय और निरंकुश शासक था। अंग, वत्स, सिन्धुसीबीर आदि कई राज्यों पर, सम्बन्धों की भी अवहेलना करके, उतने प्रचण्ड आक्रमण किये थे। अन्त में भगवान महावीर के प्रभाव से ही इसकी मनोवृत्ति में कुछ सौम्यता आयी थी। अपने तपस्या काल में ही भगवान् एकदा प्रद्योत की राजधानी उज्जयिनी में पधारे धे और नगर के बाख भाग में स्थित अतिमुक्तक नामक श्मशान में जब वह कायोत्सर्ग से स्थित थे तो स्थाणु रुद्र ने उनपर घोर उपसर्ग किये थे, जिनसे महावीर तनिक भी विचलित नहीं हुए थे। महारानी शिवादेयी तो उनकी मौसी भी थी और अनन्य भक्त भी । महानगरी उज्जयिनी में जब दैवी प्रकोप से आग लग गयी थी तो इन. महासती शिवादेवी के सतीत्व के प्रभाव से उनके द्वारा छिड़के गये जल से ही वह शान्त हो पायी थी। 24 :: प्रमुख ऐतिहासिक जन पुरुष और महिलाएं
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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