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________________ KAIRodnigmatiNMoraminamu.. श्राधिकासंघ की वह अग्रणी थी। तीसरी पुत्री प्रभावती सिन्धु-सीवीर नरेश उदायन के साथ, चौथी मृगायती वत्सनरेश शतानीक के साथ और पाँचचीं शिवाचली अवन्ति नरेश चण्डोल के साथ विवाही गयी थीं। ज्येष्ठा और अम्दना कौमार्यकाल में ही दीक्षित हा आर्थिका बन गधी थीं। गश के शासक वाहन की पत्नी पद्मावती भी चेटक को पत्री रही बतायो जाती है और उसकी पत्री बसमति अपरनाम बन्दना थी, ऐसा एक मत है। किन्तु अन्यत्र दधिवाइन की रानी का धारिणी नाम प्राप्त होता है। इस प्रकार उस काल के प्रायः महत्वपूर्ण पर्व शक्तिशाली नरेश महाराज विटक थे और वे भगवान महावीर के निकट सम्बन्धी थे। ये सब इतिहास प्रसिद्ध नरेश है। उन सबका ही कुलधर्म जैनधर्म नहीं था, सब ही ने उसे पूर्णतया अपनाया भी नहीं, तथापि भगवान महावीर के प्रति उन सभी का समादर भाव था और वे संघ ही भगवान् के व्यक्तित्व एवं उपदेशों से प्रभावित थे। जहाँ तक उनकी महादेवियों, पटक-पुत्रियों का प्रश्न है, वे सब ही भगवान् की अनन्य भक्त थीं, वर्श-चरित्र की सुश्राविकाएँ थीं। प्रायः उन सबकी ही गणना सर्वकालीन सुप्रसिद्ध सोलह सत्तियों में है। उनमें से जिनका विवाद हुआ वे सब ही पति-परायणा, शीलगुण-विमूर्षित एवं धार्मिक वृत्ति की थीं। महासनी मृगावती : शतानीक की मृत्यु के पश्चात् चण्डप्रधोत ने जब वत्सदेश पर आक्रमण किया तो राजमाला मृगावती ने बड़ी धीरता, वीरता एवं बुद्धिमत्ता के साथ अपने राज्य, पत्र एवं सतीत्व की रक्षा की थी। उसका यह राजकुमार ही लोक-कथाओं तथा भास के नाटकों का नायक, प्रद्योत पुत्री वासवदत्ता का रोमांचक प्रेमी, गजविथा-विशारद, अपनी हस्तिकान्त बीणा पर प्रियकान्त स्वरों का अप्रतिम साधक, कौशाम्योमरेश सुदयन था, और अह भी भगवान महावीर का समादर करता था। उसकी प्रिया, प्रधातदुहिता वासवदत्ता भी उनकी उपासिका थी। अपने पुत्र के जीवन, स्थिति और .: शज्य को निष्कण्टक करके तथा मन्त्री युगन्धर के हाथों में सौंपकर राजमाता मावती ने जिनदीक्षा लेकर शेष जीवन तपस्विनी आयिका के रूप में व्यतीत किया। उक्त मन्त्री युमन्धर का पुत्र ही वत्सराज्य का सुप्रसिद्ध महामन्त्री योगन्धरायण हुआ | - महासती चन्दना .: वन्दना (चन्दनवाला अपरनाम वसुमति) की करुण कथा वर्तमान युग में भी अनेक सहदय कवियों एवं जैनाजैन कथाकारों के उपन्यासों का प्रिय विषय बनी हुई है। इस महासती के जनक-जननी के विषय में कुछ मतभेद है, किन्तु उसके नाम, जीवन की घटनाओं एवं प्रेरक पुण्यचरित्र के सम्बन्ध में मतैक्य है। उस 'वज्रादपि कोराणि मृदूनि कुसमादपि', चन्दन रस-जैसी कोमल किन्तु चन्टन काष्ठ-जैसी यहाबीर युग :: 23
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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