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________________ मानणाणणाmrorewwwm 728 ? द FREE : चेटी या दास बना लेने के कारण ही यह चेटक कहलाने लगे थे। जिस संध के बह अधिनायक थे उसमें अनेक गण सम्मिलित थे तथा संघ की व्यवस्था एवं प्रशासन के हेतु उसके 'राजा' उपाधिधारी 7707 सदस्य थे, जिनका अभिषेक वैशाली की सुप्रसिद्ध राजपुष्करिणी पर होता था। अपने वीर्य, शौर्य, बुद्धि, सदाकार एवं सुसंगठन के लिए वैशाली के लिछवि सर्वत्र प्रसिद्ध थे। स्वयं महात्मा गौतम बुद्ध ने भी अनेक बार उनके उक्त गणों की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। जब चहूँ ओर अनेक राजतन्त्रीय स्वेच्छाचारी नरेश शक्ति-संवर्धन की होड़ में लगे थे, महाराज चेटक ने अपनी बुद्धि, साहस, वीरता, सौजन्य एवं राजनीतिपदत्य के बल पर उन सबके बीच वैशाली गणसंघ को धन, वैभव, शक्ति, संगठन, अनेक दृष्टियों से रक्त नरेशी की ईष्या का पात्र बना दिया था। इतिहास-विदित तथ्य है कि मगध सम्राट् कणिक अजातशत्रु और उसके अमात्य वर्षकार को वैशाली की शक्ति में सेंधे लगाने और दरारें डालने में क्या-क्या पापड़े नहीं बेलने पड़ें। कुटिल कूटनीति, षड्यन्त्रों एवं अति हीन उपायों का सहारा लेकर ही वह उसे पराजित करने में समर्थ हो सका था, वह भी तब जबकि सम्भवतया महाराज चेटक संन्वस्त या स्वस्थ हो चुके थे, अथवा अत्यन्त वृद्ध हो गये थे। महाराज चेटक की प्रसिद्धि केवल एक श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ, कुशल शासक और महान योद्धा के रूप में ही नहीं थी, वरन वह अत्यन्त न्यायप्रिय भी थे। अपनी सत्ता, कुटुम्ब और प्राणों पर संकट आ पड़ने पर भी उन्होंने अन्तिम श्वास तक न्याय का पक्ष लिया, अन्याय के सम्मुख सिर न झुकाया । अपनी शरण में आये हल्ल एवं विहल्ल नामक राजकुमारों को उन्होंने न केवल अभय दिया और उनकी रक्षा की, वरन् उनके न्याययुक्त पक्ष का बड़ी निर्भीकता के साथ समर्थन किया। सेनापति सिंहभद्र चेटक के दश पुत्र थे, जिनके नाम सिंहभद्र, दत्तभद्र, घन, सुदन, उपेन्द्र, सुकुम्भोज, अकम्पन, सुपतंग, प्रभंजन और प्रभास थे। ये सब पीर योद्धा, यशस्वी और धार्मिक थे। इनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध सिंह या सिंहभद्र हैं जो लियावियों के प्रधान सेनापति थे, घड़े कुशल सेनानी, निभीक योद्धा, साथ ही प्रबुद्ध जिज्ञास. थे। भगवान महावीर के वह अनन्य भक्त थे। बौद्ध साहित्य में भी वैशाली के इन प्रख्यात सिंह सेनापति के उल्लेख आते हैं और उनसे भी यह लगता है कि यद्यपि यह भगवान बुद्ध का भी आदर करते थे, उनके दर्शनाई जाते भी थे, उनका आतिथ्य भी करते धे, लथापि महावीर के ही अनुयायी थे। महाराज चटक की सात पुत्रियाँ थीं जो उस काल के विभिन्न प्रतिष्ठित राजवंशों में विशाही गयी थीं। त्रिशला देवी ली ज्ञातुकवंशी राजा सिद्धार्थ से विवाही थीं और स्वयं भगवान महावीर की माता थीं। चेल्लमा मगधनरेश श्रेणिक बिम्बसार की पट्टमहिषी और सम्राट कणिक अजातशत्रु की जननी थी। भगवान महावीर के 22 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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