SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के अनुयायी थे वे अपने आहेत चैत्यों में अर्हतों की उपासना करते थे, तथा शील साधार सम्पन्न थे। इनके पुत्र एवं उत्तराधिकारी राजा सिद्धार्थ थे जो एक प्रबुद्ध धार्मिक महानुभाव एवं कुशल जननेता थे । इनका ज्ञातक वंश एवं गण उस समय इतना प्रविकिEिMEERA वैशाली के अधिपति, लिचशिरोमणि महाराज चटक ने अपनी पुत्री (मतान्तर से भगिनी) प्रियंकारिणी त्रिशला अपरमाम विदेहदत्ता का पाणिग्रहण राजा सिद्धार्थ के साथ कर दिया। सिद्धार्थ और त्रिशलादेवी की युगल जोड़ो आदर्श समझी जाती थी। दोनों ही धीर, वीर, सुशिक्षित, प्रत्युष्ट, धार्मिक वृत्ति के, उदाराशय एवं सुप्रतिष्टित दमाती थे, और कुलपरम्परा के अनुसार जैनधर्म के अनुयायी तथा भगवान पार्श्वनाथ के सपासक थे। ये सौभाग्यसम्पन्न पुण्यशील दम्पती ही वर्धमान महावीर के जनक-जननी थे। यह एक विचित्र किन्न प्रशंसनीय बात है कि उस बपल्लीवादी सामन्त युग के राजन्य वर्ग के सम्भ्रान्त सदस्य होते हुए भी भगवान के पितामह तथा पिता, सार्थ और सिद्धार्थ दोनों एकपत्नीव्रत के पालक थे। राजा सिद्धार्थ के अनुज सुपाश्वं तथा ज्येष्ठ पुत्र नन्दिवर्धन का भगवान के प्रति सहज स्मेह था । सिद्धार्थ की बहन कलिंग नरेश महाराज जितशत्रु के साथ विवाही थीं, जिनकी अत्यन्त लावण्यवती, सुशील एवं गुणागरी राजकुमारी यशोदा के साथ महावीर के विवाह सम्बन्ध की बात चली थी-मतान्तर से वह राजकमारी यशोदा जिसके साथ सहाचीर के विवाह की बात चली बतायी जाती है, बसन्तपुर के महासामन्ना समरवीर की पुत्री थी। महावीर की एक बहन भी थी जिसका पुत्र राजकुमार जामालि आगे चलाकर भगवान का शिष्य हुआ और विद्रोही हो गया कहा जाता है। महाराज चेटक :: :: : विशाल एवं शक्तिशाली गणतन्त्रात्मक बज्जिसंघ के अध्यक्ष तथा वैशाली महानगरी के अधिपति, और भगवान माहावीर के मातामह, महाराज चेटक अपने समय के सम्पूर्ण भारतवर्ष के सर्थप्रधान सत्ताधीशों में से थे । बाट नात्य क्षत्रियों को लिच्छवि जाति में उत्पन्न हा थे। लिच्छविगण का केन्द्र मी वैशाली ही थी। कुछ में उन्हें इस्वाकुवंशी और कस्ट में हैहयवंशी भी लिखा है। वस्तुत: हैहयवंश भीमूलतः इत्वाकुवंश की ही एक आखा थी, और वेदवाह्य श्रमणों के उपासक होने के कारण जिन प्रशाखाओं की प्रात्य भत्रियों में गणना होने लगी थी उन्हीं में से . एक लिघठयि जाति थी। राजा के और यशोमतो के पुत्र इन महाराज चेष्टक की महापंधी का नाम सुभद्रा था। दोनों ही परम श्रद्धालु जिनभक्त थे। मगध में राजगह के सिकर जब उनका शिविर पड़ा हुआ था तो उसमें जिनायतन भी था। रणक्षेत्र में भी यह इष्टदेव की पूजा-अर्चना करना नहीं भूलते थे अहिंसा धर्म के अनुयायी होते हुए भी बड़े पराक्रमी और वीर योद्धा थे। कहा जाता है कि अनेक शत्रुओं को महाबीर-युग्म :: 21
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy