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महावीर-युग (600-500 ईसा पूर्व)
समग्र जन
तधा
समग्र जैन इतिहास को प्रधान धुरी तथा सर्वाधिक स्पष्ट पयचिह्न वर्धमान महावीर
का प्रधान (1959-527 ई. पू.) का व्यक्तित्व और जीवनचरित है। उनके पूर्व का पुरातन या पुराण धुम महावीर-पूर्व युष है तो उनके उपरान्त का महावीरोत्तर काल । वह अन्तिम पुराण पुरुष थे तो प्रायः प्रथम शुद्ध ऐतिस्पतिक व्यक्ति भी धे। इतना ही नहीं, गत ढाई सहस्र बर्ष में जितने जैन ऐतिहासिक व्यक्ति हुए हैं उनकाःमहत्व इसीलिए है कि वे तीर्थंकर महावीर के अनुयायी थे, भक्त और उपासक, तथा उनसे सम्बन्धित एवं उनके द्वारा घोषित जैन संस्कृति के संरक्षक, पोषक और प्रभावक थे। उक्स ईसा पूर्व छठी शताब्दी में तो जितने और जो जैन इतिहासांकित स्त्री-पुरुष हुए वे सब प्रायः साक्षात् रूप में भगवान महावीर से सम्बन्धित थे। कुछ उनके आत्मीयजन, कुटुम्वीजन या परिवार के सदस्य थे, कुछ नाते-रिश्तेदार आदि सम्बन्धी थे, अन्य अनेक उनके शिष्य, अनुयायी, उपासक, भक्त सुधायक थे अथवा उनके व्यक्तित्व से प्रभावित थे।
महावीर के स्वजन-परिजन ।
वर्धमान महावीर का जन्मस्थान कुण्डलपुर (कुण्डपुर, कुण्डनगर, कुण्डग्राम, वसुकुण्ड या क्षत्रियकुण्ड) पूर्वी भारत के विदेह देश के अन्तर्गत महानगरी वैशाली से नातिदूर स्थित था । वैशाली की पहचान वर्तमान बिहार राज्य के मुज़स्फ़रपुर जिले में स्थित बसाह नामक स्थान से की गयी है। उस काल में वैशाली भारतवर्ष को सर्वप्रधान महानगरियों में से एक थी, अत्यन्त धनजन सम्पन्न भी, और शक्तिशाली वल्जिगण-संघ की राजधानी थी। उक्त गणसंघ में लिच्छवि, ज्ञातृक, विदेह, मल्ल आदि अनेक स्वाधीनता-प्रेमी गण सम्मिलित थे। इन्हीं गणों में से एक झातृकधी व्रात्य क्षत्रियों का गम थी, जिसका केन्द्र उपर्युक्त कुण्डनाम था। कुण्डग्राम के स्वामी
और अपने गण के मुखिया राजा सर्वार्थ थे जिनकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती था। यह दम्पती श्रमणों के उपासक थे और तीर्थंकर पाव (877-777 ई. पूर्व) की परम्परा
21 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं