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... युग है। उसके पात्रों का चरित्र आदि इतिवृत्त यहाँ देना अभीष्ट नहीं है। - प्रथमानुयोगाधारित पचमचरित, वागर्थसंग्रह, वसुदेवहिडी, पद्मपुराण, हरिवंशपुराण.
आदिपुराण, उत्तरपुराण, त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र प्रभृति विभिन्न पुराण-ग्रन्थों एवं - पौराणिक चरित्र-काव्यों में वह विस्तार के साथ निबद्ध है। केवल इतना संकेत जलम्
होगा कि अयोध्यापति रामचन्द्र और समायण की घटनाएँ बीसवें तीर्थकर मुनिसुव्रत के तीर्धकाल में हुई और महाभारत में वर्णित पाण्डव-कौरव युद्ध 22वें तीर्थंकर लेमिनाथ के समय में हुआ स्वयं कृष्ण इन्हीं मेमिनाथ (अरिष्टनेमि) के चचेरे भाई थे तथा यह कि तेईसवे तीर्थंकर पार्श्वनाथ का सुनिश्चित समय ईसापूर्व 977-777 हैं। प्राय के निर्वाण के 250 वर्ष पश्चात् महावीर का निर्वाण हुआ छा। . ईसा पूर्व 527 में अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर के निर्वाण के प्रायः साथ ही साथ उक्त कोथा काल, अथांत पुराण पुरुषों का पुराण युग भी समाप्त हो जाता हैं। आधुनिक दृष्टि से शुद्ध इतिहास काल का प्रारम्भ उसके कुछ पूर्व ही हो चुका होता है। चौथे काल में धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, चारों ही पुरुषार्थों की प्रवृत्ति थी जबकि मोक्ष पुरुषार्थ पर अधिक बलू या, उसकति शक्ति
वाले एसएकाल में, जो तभी से चल रहा है, धर्म-अर्थ-काम रूप त्रिवर्ग का महत्त्व है। मोक्षाभिलाषी : और मोक्ष पुरुषार्थ के साधक, तपस्वी, त्यागी, साधु आदि इस बीच में भी होते रहे
हैं। वर्तमान में भी दीख पड़ते हैं और आगे भी यदा कदा होते रहेंगे, किन्तु उनकी संख्या अति विरल है, और मोक्ष-प्राप्ति इस काल में सम्भव भी नहीं है। अतएव ग्रह युग सामान्य दुनियाधी सद्गृहस्थों का ही प्रधानतया युग है और वह अपनी सुख शान्ति एवं मनुष्य जीवन की सार्थकता के लिए शक्ति-भर त्रिवर्म का साधन करते हैं 1 उन्हीं में जो आदर्श हैं, अनुकरणीय, उल्लेखनीय था स्मरणीय हैं, ऐसे ही इतिहास-सिद्ध स्त्री-पुरुषों का परिचय आगे के परिचछेदों में दिया जा रहा है। और इस इतिवृत्त का प्रारम्भ छठी शताब्दी ईसा पूर्व के प्रारम्भ में अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महाबीर के प्रायः जन्मकाल में किया जा रहा है।
प्रायशिक :: ५