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सेवा में आ गया था। यहाँ आकर भी उसने राज्याश्रय से अरसियकरें का सुप्रसिद्ध सहस्रकूट- चैत्यालय अपरनाम एल्कोटि-जिनालय तथा अन्य कई नवीन मन्दिर बनवाये, पुरानों का जीर्णोद्धार किया, श्रवणबेलगोल आदि तीर्थों पर भी निर्माण कराये और स्वगुरुओं को दानादि दिये । वीर बल्लाल ने साहित्य को भी प्रोत्साहन दिया। उसके राजकवि नेमिचन्द्र ने 'लीलावती' नामक प्रेमगाथा लिखी, राजादित्य ( 1190 ई.) ने 'व्यवहारगणित', 'क्षेत्रगणित' और 'लीलावती'
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महाँका (120 ई.) नेमक गणित-ग्रन्थ रचे। 'जगदल्ल सामनाथ ने 'कल्याणकारक' नामक वैद्यक ग्रन्थ बन्धुधर्म वैश्य ने 'हरिवंशाभ्युदय' और 'जीवसम्बोधन', शिशुमारन में 'अंजनाचरित' और 'त्रिपुरदहन' और आनन्दमय्य ने मदनविजय' की रचना की थी। ये सब विद्वान् जैन थे और कन्नड साहित्य के पुरस्कर्ता थे। इस काल के जैनमन्दिर भी होयसल कला के श्रेष्ठ नमूने हैं। राज्य की विस्तारवृद्धि भी हुई और वह दक्षिण भारत की सर्वाधिक शक्तिशाली राज्यसत्ता हो गया था।
माचिराज - एक उच्च पदस्थ अधिकारी था, जिसने वीर बल्लाल के राज्याभिषेक के अवसर पर 1173 ई. में योगवदि के श्रीकरण- जिनालय के भगवान् पश्यदेव के लिए स्वगुरु अंकलंक सिंहासन पद्मप्रभस्वामी को एक गाँव दान दिया था। सम्भवतया यह विष्णुवर्धन होयसल के प्रसिद्ध मन्त्री दण्डनायक बलदेवण के भतीजे माचिराज ही हैं ।
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नागदेव नाग या नागदेव हेगडे होयसल नरसिंह प्रथम के सचिव बम्मदेव का उसकी पत्नी जीगाम्या से उत्पन्न पुत्र था। स्वयं उसकी पत्नी का नाम चन्दाम्बिका (चन्दले या चन्द) था और पुत्र का मल्लिनाथ वीर बल्ताल का सचिवोत्तम एवं पट्टणसाम (नगराध्यक्ष ) यह मन्त्रीश्वर नागदेव देशीगण - पुस्तकं गच्छ के नयकीर्ति सिद्धान्तचक्रवर्ती का गृहस्थ-शिष्य था । उसने 1177 ई. में श्रवणबेलगोल में 'स्वगुरु की निषया तथा कलापूर्ण सुन्दर स्मारक स्तम्भ बनवाया था। गुरु की स्मृति में उसने नागसमुद्र नाम का एक सरोवर तथा उद्यान भी बनवाया था और गुरु के शिष्यों प्रभाचन्द्र, नेमिचन्द्र एवं बालचन्द्र को दान दिया था। सन् 1196 ई. में उसने बेलगोल में नगर - जिनालय अपरनाम श्रीनिलय और कमट - पाश्वरीय बसदि तथा उसके सम्मुख शिलाकुट्टम और रंगशाला बनवायी थीं तथा एतदर्थ गुरु के उपर्युक्त मुनि-शिष्यों को दान दिया था। उक्त नगर- जिनालय में महाराज बल्लालदेव एवं युवराज नरसिंह द्वितीय भगवान् की अष्टकारी पूजा देखकर बड़े प्रसन्न और प्रभावित हुए थे। मन्त्री नागदेव 'जिनमन्दिर प्रतिपाल' कहलाता था ।
दण्डनायक भरत और बाहुबलि विष्णुवर्धन होयसल के प्रसिद्ध महादण्डनायक मरियाने द्वितीय के सुपुत्र और भरतेश्वर दण्डाधीश के भतीजे, दोनों वीर प्राता वीर साल के प्रमुख सेनापतियों में थे। वीरता, स्वामिभक्ति और धार्मिकता इन्हें अपनी कुलपरम्परा से प्राप्त थी। जब 1183 ई. में वीर बल्लाल को युवराज वीर नरसिंह
होयसल राजवंश :: 175
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