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________________ के आहार की व्यवस्था के लिए दान दिये। अपनी स्वर्गीय प्रिय पलो, महासौभाग्य-शीत-सौन्दर्य सम्पन्न, परिवार सुरभि, महासती रानी भीमले (भीमवे नायकति) की स्मृति ( परोक्ष विनय) में उसने अति- विशाल एवं सुन्दर भीम-जिनालय बनवाया, जिसमें उतने चेन्न पार्श्वदेव की प्रतिष्ठापना की तथा उसी से सम्बद्ध भीमसमुद्र नाम का सुन्दर एवं विशाल बनवाया था। जानी भी के जिनेन्द्रदेव, पिता योद्देरे नायक और जननी चिम्बले थी। बाचिराज ने उक्त जिनालय के चेन्नपार्श्वदेव के भोग- अष्टविद्यार्चन एवं ऋषिआहारदान के निमित्त भीमसमुद्र के आसपास की समस्त भूमि भेंट कर दी थी। उसी अवसर पर सम्यक्चचूडामणि सेनबो मारमय्य ने भी सामन्त वाचिराज से भूमि प्राप्त करके भारसमुद्र नामक सरोवर बनवाया तथा उसे उक्त भीम-जिनालय के लिए दान कर दिया। राजा ने इन विभिन्न दानों को वाराणसी, प्रयाग आदि तीर्थों के समान पवित्र समझने का प्रजाजनों को आदेश दिया। यह महापराक्रमी, महादानी, सर्वधर्म समभावी, उदार जैन महासामन्त वाचिराज अपनी तरह का श्रेष्ठ उदाहरण है। महान् हेगडे जकय्य और जक्कब्बे-ये दोनों पति-पत्नी थे। इस दम्पती ने दिडगुरु में एक जिनालय बनवाकर उसमें तीर्थंकर सुपार्श्व की प्रतिमा प्रतिष्ठित की और देवपूजा एवं आहारदान के लिए स्वगुरु, काणूरमणभेषपाषाणगच्छ के बालचन्द्रदेव को धारापूर्वक भूमिदान दिया था। लगभग 1160 ई. में यह जिनालय बना था । सामन्त सोम-- होयसलों का वीर सेनानी अकण था जिसने चोल राज्य पर आक्रमण के समय एक जंगली मस्त हाथी को बाघों से मार गिराया और 'करिय-अय्कण' उपाधि प्राप्त की थी। उसका प्रिय पुत्र नाम था, जिसका ज्येष्ठ पुत्र सुरधेनु और कल्पवृक्ष समान सुग्ग-गवुण्ड था। उसका पुत्र यह सामन्त सोम या सोवेयनायक था, जो जिनपादकमलभृंग, जिननाथस्नपनजलपवित्रितमात्र, चतुर्विधदानविनोद, जिनसमयसमुद्धरण, भगवान् पार्श्वदेव का पादाराधक, परनारीपुत्र और भानुकीर्ति सिद्धान्त का गृहस्थ-शिष्य था । उसकी दो पत्नियाँ थीं-सीता, रेवती, अरुन्धती एवं अतिमदे के समान मारवे और रति जैसी सुन्दरी तथा जिनपादभक्त माचले | पहली से कई पुत्रियाँ हुई और दूसरी से चट्टदेव एवं कलिदेव नाम के अनुपम, गुणवान् पुत्र | स्वयं सामन्त सोम कलुकाणिनाड का शासक था। उसने एक्कोटि-जिनालय नामक पार्श्वनाथ भगवान् का एक अति उत्तुंग एवं भव्य मन्दिर बनवाया और उसके लिए 1142 ई. में सूरस्यगण के ब्रह्मदेव मुनि को पादप्रक्षालनपूर्वक एक ग्राम दान दिया था। इस सुन्दर जिनालय का निर्माता कलियुगी विश्वकर्मा शिल्पी मात्रोज था । धर्मात्मा सोम विष्णुवर्धन और नरसिंह प्रथम का वीर एवं स्वामिभक्त सामन्त था। होयसल बल्लाल द्वितीय ( 1173-1220 ई.) - वीर बल्लाल प्रथम के नाम से सुप्रसिद्ध यह नरेश नरसिंह प्रथम की रानी एचलदेवी से उत्पन्न उसका पुत्र एवं उत्तराधिकारी था और अपने पितामह विष्णुवर्धन की भाँति ही प्रतापी, बड़ा वीर, होयसल राजवंश : 173
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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