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परिवार के गुरु देशोगण के चन्द्रायणदेव थे, जिनकी प्रेरणा से सिरियादेवी ने अपनी हुलियेरपुर की बसदि में एक मनोज्ञ प्रतिमा प्रतिष्ठित कराया था। अब 1 ई. में महादेवी का स्वर्गवास हो गया तो उसकी स्मृति में गोव सामन्त ने हेग्गरे में चेन्म-पाव बसद्धि निर्माण करायी. जिसके लिए उसके पुत्र सामन्त बिहिदेव ने स्वगुरु माणिकनन्दि सिद्धान्ति को भूमियों प्रदान की। राज्य के कई प्रमुख नागरिकों ने भी भूमि आदि के दान दिये थे। इस दान से एक सत्र की स्थापना भी की गयो । महासामन्त बल्लय्य नायक ने भी इस अवसर पर उक्त जिनालय के लिए कुछ भूमि स्थलवृत्ति के रूप में भक्तिपूर्वक दी थी।
शिवराज और सोमेय. नरसिंह होयसल के इन दोनों जैन राजमन्त्रियों ने 1165 ई. में माणिकवोलल स्थान के होयसल-जिनालय को मुनि-आहार-दान आदि की व्यवस्था के लिए प्रचुर दान दिया था।
सामन्त विट्टिदेव-होयसल नरेशों के प्राचीन हलियेरपुर का अधीश्वर धीरतलप्रहारि सामन्त भीम था। उसके चार पुत्र थे-माथ, चट, मल्ल और गोबिदेव (गोव)। सामन्त चट्ट की पत्नी सातब्बे से यह सामन्त बिट्टिदेव (विष्णु) उत्पन्न हुभा था। इसे महाराज नरसिंह ने हाथियों के खर्च के लिए हेग्गरे ग्राम दिया था। जब सामन्त गोविदेश में 1161 ई. में अपनी महादेवी-मायकिति (शान्तलदेवी) की स्मृति रक्षार्थ उक्त ग्राम में चेन्न-पार्श्व-जिनालय निर्माण कराया तो उस धर्मात्मा महिला (अपनी चाची) के पुतुल्य इस सामन्त थिट्टिदेव ने अपनी पुण्य-समृद्धि के लिए उक्त जिनालय के हितार्थ मूमिदान किया तथा कालीमिर्च, अखरोट और पान के गट्ठों की
आय भी समर्पित कर दी थी। इसके गुरू भी यही माणिकनन्दि थे। यह पूरा सामन्त परिवार जैनधर्म का अनुयायी था।
सामन्त बाधिदेव-थाघि, बाचय, गुलाचिग या चिराज होयसल नरसिंह का महासामन्त, मान्यखेड्पुरवराधीशनर, मरुगरेनाड का अधिपति, अदल लोगों के लिए सूर्य के समाच, गुडुदगंग के पुत्र बसव नायक का वंशज और मंग का पुत्र था। उसकी माता का नाम बेनबाम्बिके था। यह अदलयंशी महासाहसी, पराक्रमी, वीर, यशस्वी, दानी, उदार एवं धर्मात्मा वर-विद्या-निधि महासामन्त बाचिदेव मरुगरेना की अपनी अतिशय शोभा से युक्त राजधानी कय्दाल में अतीव उच्च धर्म का पालन करते हार रखपूर्वक रह रहा था। अपने राज्य में उसने जिनेन्द्र, शिव, विष्णु सभी देवताओं के मन्दिरों का पोषण किया। उसने गंगेश्वरवास, श्रीनारायण गाह, चलवारिवेश्वर-मन्दिर, रामेश्वर-सदन, कई जिनमन्दिर तथा भीमसमुद्र एवं अदलसमुद्र नाम के दो सरोवर बनवाये, दिर्दूर के विनों को दान दिया, इस प्रकार चारों सम्प्रदायों की वृद्धि की थी 1 अपने पिता सामन्त गंग की स्मृति में उसने मंगेश्वरदेव जिनालय 1130 ई. में अनवाया और उसके लिए प्रभूत दानादि दिये। अपनी बहन (या पुत्री) कुमारी चेन्नवेनायकिती की स्मृति में रामेश्वरदेव मन्दिर बनवाया और उसमें मुनियों
172 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं