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________________ युद्धवीरों एवं मन्त्रियों के कुल में उत्पन्न शान्तियण भी वीर योद्धा और कुशल प्रशासक था। अपने कुल की मर्यादा के अनुसार, अपने जननी जनक की भाँति ही शान्तियण भी परम जिनभक्त था। उसके गुरु वासुपूज्य-सिद्धान्तिदेव के शिष्य मल्लिये पण्डित थे। अपने पूज्य पिता दण्डनाथ पार्श्व की स्मृति में दण्डाधिप शान्तियण ने अपने नगर करिकुण्ड में एक सुन्दर जिनालय निर्माण कराया और 1158 ई. में उक्त जिनालय के लिए स्वगुरु मल्लिषेण को राजा से प्राप्त ग्राम पादप्रक्षालनपूर्वक समर्पित कर दिया । भल्लगौण्ड आदि ग्राम के प्रमुखों तथा समस्त प्रजाजन ने एक तेल का कोल्हू गाँव के घाट की आय और धान की फसल का एक भाग भी जिनालय के लिए दान कर दिया। उसी मन्दिर में प्राप्त तत्सम्बन्धी शिलालेख मल्लोजनामक शिल्पी द्वारा उत्कीर्ण किया गया था । I ईश्वर चमूप- महाप्रधान - सर्वाधिकारी सेनापति दण्डनायक एरेयंग का पाद-पद्मोपजीवी ( सहायक या अधीनस्थ ) यह ईश्वर चमूपति था, और सम्भवतया उक्त एरेयंग का ही सुपुत्र था। वह वीर योद्धा और धर्मात्मा था । मन्दारगिरि की प्राचीन बसदि का उसने जीर्णोद्धार कराया था। उसकी पत्नी धर्मात्मा माचियक्के थी । माचिक्के - यह धर्मात्मा नारीरत्न नाकि-सेट्टि और नागदे की पौत्री थी, तथा साहणि-बिट्टिग की पत्नी चन्द्रों से उत्पन उत्तकी ज्येष्ठ पुत्रा ईश्वर प की यह भार्या थी और देशीगण पुस्तकगच्छ के गण्डविमुक्तदेव की गृहस्थ - शिष्या थी । वह सुन्दरी, विदुषी, दानशीला, यशस्विनी, पुण्यवान् एवं धर्मात्मा युवती रत्न थी । मयोलल नामक तीर्थक्षेत्र पर उसने एक मनोरम जिनमन्दिर तथा पद्मावतीकेरे नामक सरोवर का निर्माण कराया था, और 1160 ई. में उक्त जिनालय के लिए बहुत-सी भूमियाँ अपने पति ईश्वर चमूप तथा महाराज नरसिंह की सहमतिपूर्वक स्वगुरु को दान कर दी थी। यह महिला चतुःसमय-समुद्धरण कहलाती थी । जक्कले या जक्क होयसल नरेश नरसिंह प्रथम के महामन्त्री एवं प्रधान ताम्बूलवाहक चार्थिमय्य की धर्मात्मा पत्नी थी। हेरंगु नामक स्थान की प्रशंसा सुनकर उसने वहाँ चेन्म- पार्श्वनाथ - बसदि नाम का सुन्दर जिनालय बनवाया और समस्त क्षेत्रीय सामन्तों एवं अधिकारियों की उपस्थिति में महाराज से प्रार्थना करके भूमियाँ प्राप्त कीं, जिन्हें उक्त जिनालय के लिए उसने स्वगुरु परम विद्वान् नयकीर्ति-सिद्धान्तिदेव को पाद- प्रक्षालनपूर्वक समर्पित कर दी। उसकी बहन पश्चिवक्के भी बड़ी धर्मपरायण महिला थी । सामन्त गोव - होयसल नरसिंह का यह जैन सामन्त हुतियेरपुर का स्वामी था। उसकी मार्या शान्तले बड़ी उदार थी। परम जिनभक्त होते हुए भी वह शैव, dura और बौद्धधर्मो को भी संरक्षण प्रदान करती थी। सम्भवतया इसी महिला का अपरनाम सिरियादेवी था, अथवा यह गोव सामन्त की द्वितीय पत्नी थी। एक अन्य पत्नी महादेवी नायकिति थी, या उक्त दोनों में से किसी की यह उपाधि थी। इस होयसल राजवंश : 173
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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