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________________ inSHANT ....: जिनालय निर्माण कराये। श्रवणबेलगोल को उपयुक्त भण्डारिबसदि के एक स्तम्भ पर उत्कीर्ण 1159 ई. के शिलालेख में हुल्लराज के पराक्रम, गुण एवं धार्मिक कार्य-कलापों का विवरण प्राप्त होता है। सन 1168 ई. में उसने स्वगुरु देवकीर्तिदेव का समाधि-स्मारक केतलगेर में बनाया प्रथिः तभी उसने वहाँ की प्रतापपुर-वसाद का पूर्णतया नवीनीकरण किया। यह बसदि कोल्लापुर की रूपनारायण-बसदि से सम्बद्ध थी। श्रवणबेलगोल से दो मील दूर स्थित जिननायपुर में हुल्लराज में एक सत्र (निःशुल्क भोजनालय) स्थापित किया। अभिलेखों में बताया गया है कि जिन-मन्दिरों का जीणोद्धार करने में, जिनेन्द्र की पूजा, अर्चा एवं सामूहिक फूजोत्सवों में, मुनिजनों को दान देने में, जिनधरणों के भक्तिपूर्वक गुणगान में, पुराणशास्त्रों के सुनने में, भव्यों द्वारा प्रशंसित इस मन्त्रीश्या हुल्लराज अमूप को अत्यन्त आनन्द आता था। इन्हीं कायों में उसका नित्य पर्याप्त समय व्यतीत होता था। गंगमारसिंह के मन्त्री चामुण्डराय और विष्णुवर्धन के मन्त्री गंगराज के साथ ही साथ जैनधर्म का सर्वाधिक समर्थ प्रभावक नरसिंह होयसल के मन्त्रीश्रेष्ठ हुल्लराज को बताया गया है। संश्रित सद्गुण, सकलभप्यनुत्त, जिनमासितार्थ-निस्संशयबुद्धि, जैन-चूडामणि, सम्यक्त्व-चूडामणि, मन्त्रिमाणिक्यमौलि आदि उसके विरुद थे। दण्डनायक पार्श्वदेव (पारिषण्ण)-होयसल मरेशों का एक महाप्रधान काश्यपगोत्रीय दण्डमाथ 'मद्रादिस्य था। भद्रादित्य का ज्येष्ठपुत्र लैलदण्डाधिप था, जिसका पुत्र चाबुण्ड महाराज का तांन्ध-विग्रहिक मन्त्री था। उसका अनुज वामन था और पत्नी देकणब्बे थी। चावण्ड मन्त्री के तीन पुत्र थे-माधव, पाव और रकसिमय्य 1 इनमें से दण्डनायक पार्श्व, अपरनाम पारिसण या पारिसय्य नरसिंह प्रथम के समय में राज्य का महाप्रधान-पट्टिसभण्डारी था और निरुगुण्डनाड के करिकुण्डनगर का स्वामी था। वह श्रीपाल विद्य के शिष्य वासुपूज्य-सिद्धान्तिदेव का गृहस्थ-शिष्य था और बड़ा धर्मात्मा था। उसकी पत्नी बिम्मलदेवी प्रसिद्ध दण्डनायक मरियाने की पुत्री और दण्देश भरत की भतीजी थी। वह भी परम विदुषी एवं धर्माल्मा थी। पार्श्व मे नित्तूर में एक जिनालय भी अभयाया था। उसकी पट्टसिभण्डारी पदवी से लगता है कि वह राज्य के शस्त्रागार का महाप्रबन्धक भी था, क्योंकि 'पट्टलि' का अर्थ भाला-बरछा होता है। इस पराक्रमी योद्धा ने आहषमल्ल को युद्ध में पराजित किया था और उसी युद्ध में वीरगति पायी थी। पारिसय्य और विम्मलदेवी का पुत्र दण्डनाबक शान्तियण था। दण्डनायक शान्तियण्ण-पारिसण (पाच) जैसे युद्धवीर एवं निपुण मन्त्री श्रेष्ठ और जिममक्त बिम्मलदेवी का सुपुत्र शान्तियण्ण भी अत्यन्त साहसी, वीर और धर्मात्मा था। उसके पिता के युद्ध में वीरगति प्राप्त करने पर महाराज नरसिंह ने शान्तियण को उत्तके स्थान पर करिकुण्ड का स्वामी और राज्य का दण्डनायक बना दिया और उसकी वीरता से प्रसन्न होकर उसे एक ग्राम प्रदान किया। प्रसिद्ध 170 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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