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________________ . .. ..... था। और हामिलसंधी शीलालदेव का साई मिशारा वारस्य मूत्ति का बह गृहस्थ-शिष्य धा। गोविन्द जिनालय के लिए स्वयं होयसल नरसिंह प्रथम ने 1147 ई. में वासुपूज्य गुरु को धारापूर्वक भूमि दान दिया था। उस अवसर पर भरत-दण्द्देश भी उपस्थित थे। अन्य लोगों ने भी दान दिया था। महाप्रधान देवराज कौशिकगोत्रीय, विद्वज्जन-अनुरागी एवं जिनपदसेधी देवराज (प्रथम) नाम का ब्राह्मण सज्जन था। उसकी पत्नी कापिकच्चे से उदयादित्य नाम का यशस्वी एवं गुणवान पुत्र हुआ । उदयादित्य की भार्या किरुगणय्ये से प्रस्तुत देवराज (द्वितीय), सोमनाथ और श्रीधर नाम के तीन सुपुत्र हुए। वह देवराज द्वितीय होयमल नरेश नरसिंह प्रथम के महाप्रधान थे और उनके गुरु देशीगण पुस्तकगच्छ के अईनन्दि मुनि के शिष्य एवं नरेन्द्रकीर्ति-विद्य के सधमा मुनिचन्द्र भट्टारक थे। अपने वंश के भूषण उन महाप्रधान देवराज के विरुद सम्यक्त्वरत्नाकर, निखिल-भव्याजनैकार्णवपूर्णचन्द्र, सुहज्जन-विपद-निद्रायण, भव्यचूडामणि, कडुचरितेय आदि थे। उनकी भार्या कामलदेवी श्री जिनेन्द्रदेव के चरण-कमलों को भ्रमरी, अद्वितीय महिलारत्न थीं। देवराज को महाराज ने सूरनहल्लि नाम का ग्राम पुरस्कार स्वरूप प्रदान किया था, जिसमें इस महाप्रधान ने पावजिनेन्द्र का अमरेन्द्र के भवन जैसा सुन्दर मन्दिर बनवाया था। उक्त मन्दिर के लिए महाराज से उक्त ग्राम को स्वगुरु मुनिचन्द्रदेव को पाप-प्रक्षालनपूर्वक भेंट करा दिया था। स्वर्य महाराज ने मन्दिर के दर्शन करके और प्रसन्न होकर उस स्थान का नाम ही बदलकर 'पायपुर' रख दिया था। देवराज को होयसल महीशराज्य-भूभन्निलव-मणिप्रदीपकलश और श्री जिनधर्मनिर्मल-अभ्यर-हिमकर भी कहा गया है। सेनापति हुल्लराज वाजिवंशतिलक यक्षराज की सुशीला माय लोकाम्बिके से उत्पन्न उनके सुपुत्र हुल्ल (हुल्लप्प, हुल्लमव्य) होयसल नरसिंह प्रथम के सेनापतियों एवं मन्त्रियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं सर्वमहानु थे। महाप्रधान सर्वाधिकारी, सचिचाधीश, हिरियभण्डारी, अमूपति, दण्डाधिप आदि पदों पर आरूढ़, इन मन्त्रीश्वर को राजनीति में बृहस्पति से भी अधिक प्रवीण, शासन-प्रयन्ध में यौगन्धरायण से भी अधिक कुशल और साम्राज्य के संरक्षण में अभिनवगंगराज, तत्कालीन शिलालेखों में बताया गया है। बह नयकीर्ति-सिद्धान्तदेय के गृहस्थ-शिष्य थे, और कुक्कुटासममलधारीदेव उनके व्रतगुरु थे, जिनके घरणों में नमन करने में वह अत्यन्त प्रसन्नता अनुभव करते थे। महामण्डलाचार्य देवकीर्ति तथा अन्य अनेक तत्कालीन मुनिनायों के वह भक्त थे। उनकी सुन्दरी, विदुषी एवं धर्मात्मा पत्नी का नाम पदमलदेवी या पद्मावती था, जो ललना-रत्न, रूप-शील-गुण-निधान थी। हुल्ल के लक्ष्मण और अमर नाम के दो छोटे भाई थे और पुत्र नरसिंह था जो बल्लाल द्वितीय का सचियाधीश हुआ। महामन्त्रीश्वर र महासेनापति के रूप में तथा जैनधर्म के प्रभावक के रूप में सर्वत्र हल्लराज की ग्ल्याति थी। परम जिनभक्त होने के साथ siwarimshNews 168 :: प्रमुख ऐतिहासिक जन पुरुष और महिलाएँ
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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