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इंगुलेश्वरबलि के आचार्य महान वादी श्रुतकीर्तिदेव के शिष्य थे, और स्वयं व्याकरण, न्याय, सिद्धान्त, योगशास्त्र, मन्त्रशास्त्र, आयुर्वेद आदि सभी विषयों में निष्पात, विविध-विधा-पारंगत थे। जिस समय राजा बल्लाल दुर्धर शत्रुओं का घेरा डाले पड़ा था और उसकी अश्वारोही सेना शत्रुसैन्य को आतंकित कर रही थी, वह स्वयं एक असाध्य रोग से पीड़ित हो गया। उस अवसर पर गुरु चारुकीर्ति ने अपने अद्भुत औषधि प्रयोग से राजा को शीघ्र ही नीरोग एवं स्वस्थ कर दिया था 1 किंवदन्ती है कि उन मुनिराज के शरीर को करके बाल वाली भालः कर देती थी। सन् 1108 ई. में इस सजा ने अपने एक सेनापति मरयन्ने दण्डनायक की तीन सुन्दरी कन्याओं का विवाह सुयोग्य वरों के साथ स्वयं करा दिया था। अगले वर्ष जसने चंगाल्व नरेश को पराजित करके अपने अधीन कर लिया। जगदेव सान्तर ने जब उसकी स्वयं की राजधानी पर आक्रमण किया तो उसे पराजित करके भगा दिया और उसके कोष एवं प्रसिद्ध रत्नहार को हस्तगत कर लिया। बल्लाल प्रथम ने शशकपर से हटाकर अपनी राजधानी बेल्लुर में बनायी।
विष्णुवर्धन होयसल (1106-1141 ई.)--वल्लाल प्रथम का अनुज एवं उत्तराधिकारी था। उसका मूल माम बिट्टिम या बिट्टिदेव था, किन्तु इतिहास में वह विष्णुवर्धन होयसल के नाम से विशेष प्रसिद्ध है। वह होयसल वंश का सर्वप्रसिद्ध नरेश है, जो मारी योद्धा, महान् विजेता एवं अत्यन्त शक्तिशाली था। साथ ही वह बड़ा उदार, दानी, सर्वधर्मसहिष्णु और भारी निर्माता था। उसने द्वारसमुद्र (हलेविड़) को अपनी राजधानी बनाया-उस सुन्दर नगर के निर्माण एवं विकास का मुख्य श्रेय इसी नरेश को है। उसने घालुक्यों की पराधीनता से स्वयं को प्रायः मुक्त कर लिया, चोलों को भी अपने देश से निकाल भगाया और इस प्रकार अपने राज्य को साम्राज्य का रूप देना प्रारम्भ कर दिया था। उत्तरकालीन वैध्याव किंवदन्तियों के आधार से आधुनिक इतिहास पुस्तकों में प्रायः यह लिखा पाया जाता है कि वैष्णवाचार्य रामानुख में इस राजा के समक्ष जैनों को शास्त्रार्थ में पराजित करके राजा को वैष्णव बना लिया था; परिणामस्वरूप राजा ने अपना नाम विष्णवर्धन रख लिया, जैनों पर अत्याचार किये, उनके गुरुओं को पानी में पिलवा दिया, श्रवणबेलगोल के बाहुबलि की मूर्ति को तथा अन्य अनेक जैन मूर्तियों और मन्दिरों को तुड़वा दिया, उनके स्थान में धैष्ठाव मन्दिर बनवाये और वैष्णव धर्म के प्रचार को अपमा प्रधान लक्ष्य बनाया था। किन्तु यह सब कयन सर्वथा मिथ्या, अयथार्थ एवं भ्रमपूर्ण है। रामानुजाचार्य चोल राज्य के अन्तर्गत श्रीरंगम के निवासी, विशष्टाद्वैती दार्शनिक थे और उन्होंने श्रीवैष्णव मत के नाम से मध्यकालीन वैष्णव धर्म का आविर्भाव किया। उस मत के पुरस्कर्ता एवं समर्थ प्रचारक वह थे. इतना तो सत्य है। परन्तु वह स्वयं धार्मिक अत्याचार के शिकार थे। चोलनरेश अधिराजेन्द्र कट्टर शैव था। उसके पूर्वजों के समय में तो रामामुज जैसे-तैसे रहे, किन्तु वह स्वयं इन पर अत्यन्त कुपित था और उसी
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1.54 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं