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________________ बल्लालदेव की सेवा में था. अरसियकरे नगर में एक अति भव्य एवं विशाल सहस्रकूट - चैत्यालय निर्माण कराया था। यह नगर स्वयं नाना कूप तड़ाग, वापी, वन उपवनों, फल-पुष्प के उद्यानों, हरे-भरे शालि क्षेत्रों, सुन्दर सुन्दर भवनों और धर्मात्मा भव्यजनों (जैनों) की घनी बस्ती के कारण अत्यन्त मनोहर, महत्त्वपूर्ण और प्रसिद्ध था। उक्त जिनालय में भगवान् जिनेन्द्र की नित्य अष्टविधि पूजन, पुजारी और सेवकों की आजीविका, चतुर्वर्ग के लोगों के लिए निःशुल्क भोजन दान (सत्र) और मन्दिर के जीर्णोद्धार आदि के लिए राजा बल्लाल से हन्दरहालु नामक ग्राम प्राप्त करके उसने मूल संघ- देशीगण पुस्तकगच्छ इंगुलेश्वरबलि के आचार्य माघनन्दि सिद्धान्त, के प्रशिष्य और शुभचन्द्र-वैविद्यदेव के शिष्य शव्य सागरनन्दि- सिद्धान्तदेव को धारापूर्वक समर्पित किया था। यही आचार्य रेवरस के कुलगुरु भी थे। रेच द्वारा प्रतिष्ठापित उक्त अत्यन्त देदीप्यमान सहस्रकूट जिनबिम्ब के लिए स्थानीय जैनों ने एक कोटि द्रव्य एकत्र करके प्रसिद्ध अरसियरे में एक विशाल जिनमन्दिर और उसकी सुदृढ़ चहारदीवारी बनवायी । राजा और प्रजा ने, जिससे जितना बन पड़ा, उसके लिए द्रव्य दिया। इस जिनालय के निर्माण में सातकोटि (सात वर्गों के ?) लोगों की सहायता थी, इसीलिए यह एल्कोटि-जिनालय कहलाया। उसके लिए एक सहस्र परिवारों से भूमि खरीदी गयी थी और राजा बल्लाल ने भी उक्त भूमि पर दस होन्नुवाला कर माफ़ कर दिया था। अरसियकेरे के लोगों ने भगवान् शान्तिनाथ का भी एक सुन्दर मन्दिर बनवाया था। उस नगर के तत्कालीन जैनों में प्रमुख पट्टणस्वामी (नगरसेठ) कल्लिसेट्टि और जक्किसेट्टि थे। स्थानीय जैनों की उत्कट धर्मनिष्ठा एवं धर्म-संरक्षण के अपूर्व उत्साह से प्रसन्न होकर धर्मात्मा वीर श्रीकरणद रेशिमय्य ने उपर्युक्त निर्माण और दान किये थे। उसने 1200 ई. के लगभग श्रवणबेलगोल के निकट जिननाथपुर मैं एक शान्तिनाथ जिनालय ( शान्तीश्वर बसदि ) बनवाया था, और उसे भी स्वगुरु एवं मन्दिर के प्रतिष्ठाचार्य सागरनन्दि सिद्धान्त को सौंप दिया था । यही आचार्य कोल्लापुर की प्रसिद्ध सावन्त बसदि (सामन्तों का जिनालय) के भी अधिष्ठाता थे। सोचिदेव कदम्ब - बनवासि मण्डल के स्तन्यरूप सुन्दर एवं सुसमृद्ध नागरखण्ड के एक भाग पर प्राचीन कदम्बकुल का परम्परागत राज्य चला आता था। इस कुल ब्रह्मभूपाल और चहलदेवी का पुत्र बोप्पभूप हुआ, जिसकी पत्नी का नाम श्रीदेवी था। इन दम्पती का पुत्र यह सोचिदेव या सोमनृप था। यह राजा बड़ा शूरवीर, प्रतापी, उदार और सत्यवादी था, और इसीलिए उसे कदम्बरुद्र, गण्डरदायणि, एण्डलिक भैरव, निगलंक मल्ल, सत्यपताक आदि विरूद प्राप्त हुए थे। वह कलचूर्य-चक्रवर्ती विज्जल के पौत्र मैलिमुदेव रायमुरारि भुजबल मल्ल का अधीनस्थ राजा था। उसने बंगाल्य नरेश को पराजित करके उसे जंजीरों से बाँध दिया था। इसी उपलक्ष्य में उसे 'रावण' विरुद मिला था। बाल्यावस्था में ही उसके सत्यनिष्ठ मधुरवचनों के कारण वह 'सत्ताक' कहलाने लगा। किशोरावस्था को प्राप्त होते न होते वह मैं राष्ट्रकूट- चोल- उत्तरवर्ती चालुक्य कलचुरि : 147 --
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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