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निकलंक मल्ल' और अपनी शक्ति एवं पराक्रम का परिचय देते ही "कदम्बरुद्र कहलाने लगा था। वह बड़ा उदार और दानी भी था। उसके समय में नागरखण्ड की भाँति ही तेवरतेप्प भी बनवासि देश का भूषण था और नागबल्लरी एवं पुंगीफल (सुपारी) के उद्यानों के लिए प्रसिद्ध था। राजा सोविदेव के चर-कमलों का भ्रमर उसका सामन्त तेवरतप्प का नालप्रभु (अधिपति) वोप्पगावुण्ड था। उसकी पत्नी धाविकब्बे गावृषिष्ट थी, जिसके भाई बम्मिसेष्टि और कल्लिसेष्टि थे। बोपगावण्टु और चाविकब्जेगावण्डि का पुत्र लोकगाण्ड तेवरतेप्प का नालप्रभु था। उसके दोनों मातुल बम्मिसेट्टि और कल्लिसहि भव्य-शिखा-मणि (परमजैन) थे। उसकी माता भी बड़ी धर्मात्मा थी तथा उसकी पत्नी, जो सोत्तूर के गेयूद-गावुण्ड और धर्मात्मा कालिकगाबुण्डि की पुत्री घी, स्वयं सकलशीलगणोत्तम तथा परम जिनभक्त एवं दानशीला थी। इसी कारण उसने महासती असिमब्बे जैसी ख्याति प्राप्त की थी। अपने उक्त स्वजनों परिजनों की प्रेरणा एवं सहयोग से लोकगावुण्ड ने तेवरतेप्प नमर में एक अस्थन्त भव्य रत्नत्रयदेव-जिनालय नाम का जिनमन्दिर बनवाया, एक सरोवर, कूप और प्रपा बमकायी और सत्र स्थापित किया था। इन सबकी व्यवस्था, देवार्चन, मुनि-आहारदान आदि के निमित्त प्रभूत भूमिदान धर्मात्मा लोक-माधुपा ने स्वगरु महामण्डलाचार्य भानुकीर्ति सिद्धान्त देव को पादप्रक्षालनपूर्वक समर्पित कर दिया था। भानुकीति परमशास्त्रज्ञ मुनिधन्द्रदेव के प्रिय शिष्य थे और भारी मन्त्रवादी थे। सेबरतेय के 117 शिलालेखक म न र धर्मात्मा सामन्त लोक गाण्ड का वर्णन है। महाराज की स्वयं की अनुमति एवं सहयोग अपने प्रिय सामन्त के उक्त धर्मकार्यों में थे।
छोप्पदेव कदम्ब-नागर खपष्ट के कदम्बकुल में उत्पन्न महाराज सोविदेव या सोमनृप की रानी लघ्बलदेवी से उत्पन्न उसका पुत्र एवं उत्तराधिकारी यह बोपदेव नृपति था जो बड़ा पुण्यवान और प्रतापी था। सुन्दर बान्धवपुर नगर उसकी राजधानी थी। राजा का स्वयं का तथा उसकी कुल-परम्परा का धर्म जैनधर्म था। उसके इष्टदेव भगवान् शान्तिनाथ थे, जिनका अति सुन्दर जिमालय उक्त नगरी की शोभा बढ़ाता था। वस्तुतः इस मन्दिर में भगवान् धर्मनाथ, शान्तिनाथ और कुन्थुनाथ के तीन चैत्य थे, जिनके कारण बह रत्नत्रय जिनालय कहलाता था। इस मन्दिर के आचार्य मुलसंघ-काणूरगण-तिन्त्रिणिगच्छ-नुन्नवंश के भानुकीर्तिसिद्धान्ति थे, जो रावणान्दि के प्रशिष्य और पयनन्दि के शिष्य मुनिचन्द्र के शिष्य थे तथा नयकीर्तिव्रती के गुरु थे। इस बोपदेव राजा के महाप्रधान शंकर सामन्त ने उसकी सहमति एवं सहयोग से मागुद्धि में जो शान्तिनाथ जिनमन्दिर बनवाया था उसके दर्शन के लिए वह नरेश ही रेचण दण्डाधीश को अपने साथ लिवा ले गया था। बन्दलिके के 1203 ई. के शिलालेख में इन्हीं कदम्बवंशी लोमनृपात्मज बान्धवपुराधिप बोपदेव को रेच-चमूपति के अनन्तर बन्दलिके तीर्थ की उन्नति करनेवाला कहा है। उस समय. बोप्प का पुत्र
148 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ