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________________ उल्लेख 'कलचुरि भु रे-मुजबल चक्रवर्ती त्रिभुवन' विरुद के साथ हुआ है। उसने ॥ॐ क्ष ई. पर्यन्त a और इतने समय में ही प्रमाणित कर दिया कि वह एक वीर योद्धा, भारी विजेता और महानू नरेश था। अपने कुल की प्रवृत्ति के अनुसार वह जैनधर्म का अनुयायी था। राज्य की प्राप्ति और विस्तार एवं संरक्षण में बिज्जल का प्रधान सहायक उसका महामात्य एवं प्रधान सेनापति जैन वीर रेचिमय्य था। उसका एक अन्य जैन मन्त्री ब्राह्मण बलदेव था, जिसका जायाला वासव भी जैन था । बलदेव की मृत्यु के उपरान्त उसके पद पर बासव की नियुक्ति हुई। अपने श्वसुर के सहकारी के रूप में वह पहले से ही कार्य कर रहा था, किन्तु बड़ा महत्त्वाकांक्षी था। अपने कुलधर्म में उसे अपने लौकिक उत्कर्ष की सम्भावना कम दीख पड़ी। संयम-नियम और तपस्या से उसे घृणा थी। अतएव उसने एक नवीन मत का प्रचार करने का निश्चय किया। जैनधर्म के प्रचलित लोकतत्त्वों तथा प्रसिद्ध एवं व्यवहृत मान्यताओं के साथ शैवमत की कतिपय परम्पराओं एवं मान्यताओं का मिश्रण करके, और इस मिश्रण को अपने मनोनुकूल ढालकर उसने लिंगायत अपरनाम वीरशैव मत की स्थापना की। ऐसी किंवदन्ती है कि अपनी कार्यसिद्धि के लिए उसने राजा का ध्यान अपनी अतीव सुन्दरी बहन पद्मावती की ओर आकृष्ट किया और अन्ततः राजा के साथ उसका विवाह कर दिया था। अपने भाई की इच्छानुसार पद्मावती महाराज को अपने धर्म से विमुख और बासव के मत का पोषक तो न बना सकी, किन्तु उसके मोहपाश में बँधकर बिज्जल राज्यकार्य की ओर से असावधान हो गया। स्थिति का लाभ उठाकर बासव ने अपने मत के प्रचार में सारा राज्यकोश खाली कर दिया और राज्य के विभिन्न पदों से जैन अधिकारियों एवं कर्मचारियों की पृथक करके अपने साथियों और सहायकों को नियुक्त करना प्रारम्भ कर दिया। अन्ततः जब राजा की मोहनिद्रा टूटी और बालय के कुकृत्यों पर उसका ध्यान गया तो वह अत्यन्त कुपित हुआ और दुष्टों को कठोर दण्ड देने लगा । परन्तु Area ने विषाक्त आम खिलाकर छल से राजा की हत्या कर दी। एक मत के अनुसार बिल ने विरक्त होकर अपने पुत्र सोमेश्वर को राज्य सौंप दिया और शेष जीवन धर्म साधन में बिताया था। बिज्जल के उपरान्त उसके तीन या चार पुत्रों एवं वंशजों ने क्रमशः राज्य किया। उन्होंने बासव एवं उसके लिंगायतों का क्रूरता के साथ दमन किया बताया जाता है, किन्तु बासत्र के कतिपय शिष्यों एवं भक्तों के प्रयत्नों से लिंगायत मत फैलता चला गया और आनेवाली कई शताब्दियों में दक्षिण भारत में जैनधर्म का सबसे भयंकर शत्रु सिद्ध हुआ । बिज्जल के वंश का अन्त भी 1183 ई. के लगभग हो गया, जब चालुक्य सोमेश्वर चतुर्थ ने कल्याणी पर पुनः अधिकार कर लिया। यह पुनः स्थापित चालुक्य सत्ता भी 15वीं शती के प्रारम्भ में समाप्त हो गयी। सेनापति रेचिमय्य- इस युग का सर्वाधिक उल्लेखनीय जैन वीर है। रेच, राष्ट्रकूट बोल- उत्तरवर्ती चालुक्य कलचुरि : 145
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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