SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ · बिज्जल कलचुरि बारहवीं शती के मध्य के उपरान्त लगभग तीन दशक पर्यन्त कई कलचुरि नरेशों ने कर्णाटक देश पर राजधानी कल्याणी ते शासन किया। मध्यभारत में त्रिपुरी डाहल आदि के कुलचुरि गुज राजे तीसरी शती ई. के मध्य से ही राज्य कर रहे थे। वे उत्तर प्रदेश में सरयूपार आदि कई चेदिवंशी भी कहलाते थे और विदर्भ, महाकोसल, उत्तर प्रदेशों में इस वंश की शाखाएँ चलीं। सन् 249 ई. में चेदि या कलचुरि संवत् के प्रवर्तनकाल से इस वंश का उदय माना जाता है। अनुश्रुतियों के अनुसार इस वंश का आदिपुरुष कीर्तिवीर्य था, जिसने जैन मुनि के रूप में तपस्या करके कर्मों को नष्ट किया था। 'कल' शब्द का अर्थ 'कर्म' भी है और 'देह' भी । अतएव देहदमन द्वारा कर्मों को चूर करनेवाले व्यक्ति के वंशज कलचुरि कहलाये। इस वंश में जैनधर्म की प्रवृत्ति भी अल्पाधिक बनी रही। प्रो. रामास्वामी आयंगर आदि कई दक्षिण भारतीय इतिहासकारों का मत है कि पाँचवीं छठी शती ई. में जिन शक्तिशाली कलभ्र जाति के लोगों ने तमिल देश पर आक्रमण करके और बोल, चेर तथा पाण्ड्य नरेशों को पराजित करके उक्त समस्त प्रदेश पर अपना शासन स्थापित कर लिया था, वे प्रतापी कलन नरेश जैनधर्म के पक्के अनुवायी थे। इनके तमिल देश में पहुँचने पर वहाँ जैनधर्म की पर्याप्त उन्नति हुई। यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि कलनों का मध्यभारत के कलचुरियों के साथ क्या सम्बन्ध था अथवा कल्याणी के उपर्युक्त कलचुरियों का उन दोनों में से किसके या दोनों के ही साथ कोई सम्बन्ध था या नहीं। यह सम्भावना है कि उत्तर भारत के कलचुरियों की ही एक शाखा सुदूर दक्षिण में कलभ्र नाम से प्रसिद्ध हुई और कालान्तर में उन्हीं कलनों की सन्तति में कर्णाटक के कलचुरि हुए। 1128 ई. में चालुक्य सम्राट् सोमेश्वर तृतीय ने पेनकिलघुरि नामक व्यक्ति को, जो स्वयं की कृष्ण को सन्तति में उत्पन्न हुआ बताता था, बीजापुर विषय (जिले) का शासक नियुक्त किया था। उसको मृत्यु के उपरान्त उसका पुत्र बिज्जलकलचुरि उसी पद पर नियुक्त हो गया। वह बड़ा वीर, चतुर और महत्त्वाकांक्षी था। परिणाम यह हुआ कि चालुक्य जयसिंह तृतीय ने उसे महामण्डलेश्वर बना दिया और अपना सेनाध्यक्ष नियुक्त कर दिया। चालुक्य तेलप तृतीय की अयोग्यता का लाभ उठाकर उसने अपने नेतृत्व में विद्रोही सामन्तों की संगठित किया और 1151 ई. में राज्यसत्ता सहज ही हस्तगत कर ली। इस पर अनेक सामन्त उससे अप्रसन्न हो गये और गृहयुद्ध प्रारम्भ हो गये । अन्ततः बिज्जल ने तैलप तृतीय को पकड़कर बन्दीगृह में डाल दिया और दृढ़ता के साथ समस्त विरोधी शक्तियों का दमन करके 1156 ई. में स्वयं को कल्याणी का सम्राट् घोषित कर दिया तथा अपने नाम का संवत् भी प्रचलित कर दिया। उसी वर्ष के एक शिलालेख में महाराज बिज्जल का 144 प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy